क्या राम को वनवास भेजना कैकेयी का छुपा एजेण्डा था? -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

Many times in life, something happens that we feel harmless or negative for ourselves. Sometimes some special and close person of ours treats

बाधाएं खड़ी करने वाले आपके वेलविशर हैं -दिनेश मालवीय   जीवन में कई बार कुछ ऐसा हो जाता है, जो हमें अपने लिए हार्मफुल या नेगटिव लगता है. कभी हमारा कोई ख़ास और निकट का व्यक्ति हमसे ऐसा व्यवहार कर बैठता है, कि हमें उससे चिढ़ या नफरत हो जाती है. लेकिन जो हमें हार्मफुल लगता है, वह हार्मफुल ही हो, यह ज़रूरी नहीं है. हमारे किसी अपने का बुरा व्यवहार हमें जीवन में अधिक मजबूत संकल्प के साथ खड़े होने की ताकत भी देता है. पिता की डांट खाकर या परिवार में किसीके गलत व्यहहार से दुखी होकर अनेक लोग घर से चले गये और उन्होंने जीवन में ऐसा कुछ अच्छा कर दिखाया जो नजीर बन गया. रामकथा में भी कैकेयी द्वारा राम को वनवास का वरदान माँगना ऐसा ही प्रसंग है. यह इतनी आश्चर्यजनक बात है कि सहज ही विश्वास नहीं होता. कैकेयी के मन में राम के प्रति कोई दुराभाव हो यह मुमकिन ही नहीं लगता. इसके कुछ कारण हैं. रामचरितमानस में ही प्रसंग आता है कि कैकेयी कहती है कि यदि विधाता मुझे और जन्म दे तो हर जन्म में राम ही मेरे पुत्र और सीता मेरी बहू बनें. वैसे तो श्रीम का स्वभाव ऐसा था कि वह अपनी तीनों माताओं को समान रूप से प्रेम करते थे और तीनों को बराबर सम्मान देते थे. फिर भी, कैकेयी से उनका विशेष स्नेह था. ऐसा ही भाव कैकेयी का भी उनके साथ था. कैकेयी को जब मंथरा राम के खिलाफ भड़काती है, तो कैकेयी कहती है कि राम का मेरे प्रति विशेष स्नेह है. इस बात को मैंने बहुत बार परखा है. इस सन्दर्भ में कहीं पढ़ी हुयी एक बात याद आती है. बचपन में राम जब किसी बात पर रूठ जाते थे, तो किसीके मनाये नहीं मानते थे. माता कौशल्या और सुमित्रा उन्हें मनाने के लिए माखन-मिश्री लेकर खड़ी रहती थीं, लेकिन वह कैकेयी के महल में जाकर ही भोजन करते थे. ऐसी और कुछ बातें सामने आती हैं, जिनसे ऐसा लगता है कि कैकेयी द्वारा राम को वनवास भेजने का वरदान मांगने के पीछे छुपा एजेण्डा  था. यह भी संभाव हो किराम को भी कुछ एहसास हो. राम जब वाल्मीकि के साथ जाकर ताड़का और सुबाहु सहित अनेक भयानक राक्षसों को मारकर और धनुषयज्ञ की शर्त पूरी कर सीता को ब्याह कर लौटते हैं, तो माताओं को बहुत आश्चर्य होता है. वे उनसे पूछती हैं कि राम! तुम इतने कोमल और कम आयु के हो, तुमने यह सब कैसे किया? कैकेयी को विश्वास हो गया कि राम कोई मामूली इंसान नहीं हैं, उनमें कुछ अलौकिक शक्ति और प्रतिभा है. ऐसा लगता है कि कैकेयी ने उसी समय निश्चय कर लिया था कि वह उनसे कुछ ऐसा काम करवाएगी, जिससे वह कोई सामान्य राजा या शासक बनकर न रह जाएँ. उनकी दिव्यता संसार के सामने आनी चाहिए. दरअसल रघुकुल की रावण से शत्रुता बहुत समय से चल रही थी. राम के पूर्वज महापुरुष दिलीप जब राजा बने तो उन्होंने सब राक्षसों को अपने राज्य से खदेड़ दिया था. इसलिए उनका रावण से लम्बे समय तक संघर्ष चला था. उनके बाद अज राजा बने. उनके साथ भी रावण का घोर संघर्ष चला और युद्ध भी हुआ. रामके पिता दशरथ से भी उसका युद्ध हुआ और रावण पराजित भी हुआ. लेकिन उसे कोई मार नहीं सका. उसे ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु मनुष्य के हाथों ही होगी. राम के ये सभी पूर्वज उसे मारने में समर्थ नहीं रहे. कैकेयी समझ गयी थी कि जिस मनुष्य के हाथों रावण का अंत होना है, वह राम ही हैं. यदि वह दशरथ से यह कहती कि राम के नेतृत्व में अयोध्या की सेना लंका पर चढ़ाई कर रावण का अंत कर दे,तो इस बात की बहुत कम संभावना थी कि दशरथ ऐसा करने की आज्ञा देंगे. मान लीजिये, दशरथ ऐसा कर भी देते, तो राम को वैसी प्रतिष्ठा और सम्मान नहीं मिल पाता, जैसा वनवासी के रूप में रावण को धराशायी करके मिला. कैकेयी जानती थी कि राम में वह सामर्थ्य और प्रतिभा है कि वह अपने दम पर यह असंभव लगने वाला काम कर सकते हैं. यानी कैकेयी के मन में राम के प्रति दुराभाव की बात ठीक नहीं लगती. इसके विपरीत वह उनकी सबसे बड़ी हितैषी ही लगती है. एक और प्रश्न यह उठता है कि यदि कैकेयी राम को राज्य से वंचित कर अपने पुत्र भरत को राजा बनाए रखना चाहती थी, तो उसने राम के लिए सिर्फ चौदह वर्ष का वनवास क्यों माँगा? चौदह वर्ष बाद राम के लौटने पर वह स्वाभाविक रूप से राजा बनने के अधिकारी हो जाते. इसके पीछे विद्वान यह कारण बताते हैं कि उस समय तक रावण की आयु केवल चौदह वर्ष ही बची थी. इस बात पर पूछा जा सकता है कि यदि रावण की उम्र चौदह वर्ष ही बची थी तो राम को चौदह वर्ष से एक-दो वर्ष पहले वनवास दिया जा सकता था. लेकिन इससे भी राम को वांछित गौरव और प्रतिष्ठा नहीं मिलती. चौदह वर्ष वनवास के दौरान राम ने ऋषि-मुनियों से सत्संग कर बहुत कुछ सीखा. उनसे अनेक प्रकार की विद्याएँ अर्जित कीं. अनेक तरह के दिव्यास्त्र प्राप्त किये. जीवन की विपरीत परिस्थितियों से जूझना सीखा. उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए आचरण के उच्चतम आदर्श रखे. राम ने अखंड तपस्वी जीवन व्यतीत कर और अलौकिक शक्तियां प्राप्त कीं. अब दो और प्रसंग देखते हैं. चित्रकूट में भरत के साथ तीनों माताएँ राम से मिलकर उन्हें अयोध्या वापस चलने के लिए मनाने जाती हैं. श्रीराम सबसे पहले कैकेयी से मिलते हैं. बाहरी रूप से देखने पर इसका एक कारण यह लगता है कि वह कैकेयी के मन से ग्लानि का भाव निकालना चाहते थे. यह बात अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन यह भी संभव है कि कैकेयी ने रावण वध के सन्दर्भ में उन्हें कुछ संकेत दिया हो. इसके बाद जब लंका विजय कर राम अयोध्या लौटते हैं, तो सबसे पहले कैकेयी से मिलते हैं. इसके पीछे भी विद्वान यही कारण बताते हैं कि वह कैकेयी से मन से अपराध बोध कम करना चाहते थे. वह ऐसा आदर्श सामने रखना चाहते थे कि हमें अपना बुरा करने वाले के प्रति भी सद्भाव रखना चाहिए. लेकिन मेरे विचार से वह आँखों-आँखों में कैकेयी से “Mission Accompalished कहा हो. यदि इस थ्योरी को नहीं भी माना जाए तो यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि हमारे किसी अपने के गलत व्यवहार को हम सफलता के लिए गहरे संकल्प में बदल सकते हैं. दोस्तो, राम का यह आचरण यह सीख भी देता है कि जीवन में जो लोग भी आपके लिए बाधाएं पैदा करते हैं, उनको अपना वेलविशर मानकर उनके प्रति आभारी होना चाहिए. यदि वे बाधाएं खाड़ी नहीं करते तो आप कामयाब नहीं हो सकते थे. उनके साथ द्वेष या शत्रुता का भाव न रख कर मैत्री भाव रखें