एक बीमारी ने बता दिया कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा कितना अपर्याप्त...


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में 2,329 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इन मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया है

कमोबेश दो बरस भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में सबक के बरस साबित हुए हैं। एक बीमारी ने बता दिया है कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा कितना अपर्याप्त है। इस लिहाज से केंद्र व राज्य की सरकारों का फोकस इस ओर बढ़ा है। मसलन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में हाल में एकमुश्त 9 मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन हुआ है, तो खुशी दोगुनी हो जाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में 2,329 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इन मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया है, ये कॉलेज सिद्धार्थनगर एटा, हरदोई, फतेहपुर, देवरिया, गाजीपुर मिर्जापुर और जौनपुर जिलों में स्थित हैं। यानि पूर्वांचल को सेहत के लिहाज से मजबूत करने की कोशिश हुई है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा भी कि' नौ मेडिकल कॉलेज स्वस्थ भारत के सपनों को साकार करेंगे। ये राज्य के लोगों के लिए एक उपहार हैं।' 

वाकई इन मेडिकल कॉलेज के खुलने से उत्तर प्रदेश में अस्पताल सुविधा में लगभग 2,500 बिस्तर जुड़ जाएंगे। यह बात सिर्फ उत्तरप्रदेश की ही नहीं है बल्कि बिहार, झारखंड समेत कई ऐसे राज्य हैं जहां हर चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार की तत्काल जरूरत है। अभी बहुत बड़ी जरूरत निजी अस्पतालों से रही हैं। इससे निजी स्वास्थ्य सेवाओं का एक पूरी की जा रही मकड़जाल आमआदमी के इर्दगिर्द बन गया है और वह मजबूरी में यहां इलाज के लिये जाने को विवश है। 

जहां तक उत्तर प्रदेश जैसे करीब 25 करोड़ की आबादी का सवाल है तो यहां अविलंब न केवल चिकित्सा की पढ़ाई, बल्कि चिकित्सा सेवाओं और चिकित्सकों की संख्या का बढ़ना अनिवार्य है। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में बीती जुलाई तक 558 मेडिकल कॉलेज सेवाएं दे रहे थे, जिनमें से 289 सरकारी और 269 गैरसरकारी थे। अलग अलग चरण में नरेंद्र मोदी सरकार के समय करीब 157 मेडिकल कॉलेज खुले हैं या उन्हें मंजूरी मिली है। 

आंकड़ों से साफ है कि निजी मेडिकल कॉलेज की संख्या ज्यादा है, सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या निजी कॉलेजों से बहुत ज्यादा होनी चाहिए। सरकारी मेडिकल कॉलेज किफायती दर पर चिकित्सक तैयार तैयार करते हैं. सस्ती दर पर चिकित्सा सेवा भी देते हैं। इसके अलावा निजी मेडिकल कॉलेज से पैसे खर्च करके डिग्री हासिल करने वाले चिकित्सकों पर कमाने का दबाव भी ज्यादा रहता है। सरकारी मेडिकल कॉलेज की ज्यादा संख्या किसी भी राज्य के सामाजिक विकास के लिए बेहतर संकेत हो सकती है। 

बहरहाल प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना का भी शुभारंभ किया है। दावा तो यह है कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए देश की सबसे बड़ी योजना है। हालांकि क्षेत्र में भारत को बहुत लंबा सफर तय करना है। डॉक्टर और मरीज अनुपात के अलावा चिकित्सा की आधारभूत सेवाओं का बड़ा अभाव है। 

आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं की कमियों पर भी गौर करना चाहिए। सरकारकी इस योजना की विदेश भी तारीफ हुई है, लेकिन यह देखना भी जरूरी है कि निजी अस्पताल क्या आम गरीब मरीजों को पूरा लाभ दे रहे हैं? क्या दुर्भाग्यवश महामारी लौटी तो इन अस्पतालों से कोई भी निराश नहीं लौटेगा? 

किसी भी विकास को जमीनी स्तर पर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने के लिए सरकारों को पूरी मुस्तैदी से सेवाओं को निगरानी करनी चाहिये, राज्यों की भी इस मामले में बड़ी जिम्मेदारी है। किसी भी देश के लिये बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था ही ऐसे मजबूत स्तंभ है जो भावी पीढ़ी को भी मजबूत धरातल देते है और मौजूदा पीढ़ी को भी|

आशीष दुबे