साइबर दुनिया के विस्तार से उपजी चिंताएं.. आशीष दुबे


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स्टोरी हाइलाइट्स

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय दो वेबसाइट व बीस यूट्यूब चैनलों को भारत-विरोधी दुष्प्रचार का दोषी मानते हुए,यह जाहिर करता है कि वर्चुअल वर्ल्ड की गतिविधियां अब कितनी गंभीर हो चली हैं और इन गतिविधियों ने कितने व्यापक रूप से समाज को प्रभावित करना शुरू कर दिया है...

हाल में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय दो वेबसाइट व बीस यूट्यूब चैनलों को भारत-विरोधी दुष्प्रचार का दोषी मानते हुए द्वारा ब्लॉक किए जाने और यू ट्यूब प्रबंधन को इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का साफ निर्देश यह जाहिर करता है कि वर्चुअल वर्ल्ड की गतिविधियां अब कितनी गंभीर हो चली हैं और इन गतिविधियों ने कितने व्यापक रूप से समाज को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। दरअसल साइबर दुनिया बेहद अराजक है और दुनिया की सभी सरकारें इससे परेशान हैं। आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि कार्रवाई की जद में आये इन चैनलों ने कितनी बड़ी पहुंच बना ली थी।

इन तमाम चैनलों के सब्सक्राइबर्स की संख्या 35 लाख से ऊपर पहुंच गई थी और उनके वीडियो को 55 करोड़ से भी अधिक बार देखा जा चुका था। यह कार्रवाई उसी समय हो जानी चाहिए थी, जब इन चैनलों के खिलाफ नियामक संस्था में पहली शिकायतें आई थीं। चूँकि साइबर दुनिया की प्रकृति ही ऐसी है कि यहां मिनटों में असंख्य लोगों तक पहुंच बन जाती है, ऐसे में इसकी निगरानी करने वाले तंत्र को भी उतनी ही तत्परता बरतनी चाहिए। यह पहली बार नहीं है, जब भारत के खिलाफ इस तरह के हथकंडे अपनाए गए हैं, और इनके पीछे किन देशों का हाथ है, यह भी कोई छिपी बात नहीं है, खासकर जम्मू-कश्मीर में लोगों को भड़काने के लिए पाकिस्तानी मीडिया के एक धड़े और प्रायोजित स्वतंत्र संस्थाएं दशकों से यह काम करती रही हैं।

भारत सरकार ने घाटी में उनके प्रसारण को रोकने के कई बार कदम भी उठाए हैं। मगर ऐसे लोगों के निशाने पर हमारा पूरा सामाजिक तानाबाना और भारत राष्ट्र की शांति व्यवस्था है। मुश्किल यह है कि हकीकत से वाकिफ कराने वाली सूचनाएं भी सोशल मीडिया में उतनी ही तेजी से सामने आती हैं, मगर दुष्प्रचार की गिरफ्त में आ चुके सभी लोगों तक वे पहुंचे यह संभव नहीं होता। फिर सवाल यह भी है कि सोशल मीडिया के सभी यूजर्स मानसिक या बौद्धिक रूप से इतने परिपक्व नहीं होते कि वे हों कि सचझूठ में फर्क कर सकें। क्योंकि सोशल मीडिया पर अब गांव देहात से लेकर दूरस्थ इलाकों के लोग भी जुड़े है।

खतरा यह भी है कि भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत सारे देश दहशतगर्दों द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल से वाकिफ है। मगर इंटरनेट के विस्तार ने बेहद गंभीर रूप दे दिया है। अब सरकार पर पूरा दारोमदार आ जाता है कि वह अपने निगरानी तंत्र को चाकचौबंद करते हुए इनकी निगरानी व कार्रवाई करे। हालांकि यह बात भी गौरतलब है कि सोशल मीडिया के इन मंचों के जरिये लोगो को अपनी बात रखने यानि अभिव्यक्ति की आजादी को काफी मजबूत और व्यापक बना दिया है। लिहाजा यह भी जरूरी हो जाता है कि कड़ाई की चपेट में नागरिक स्वतंत्रता और लोकतान्त्रिक मूल्यों का दायरा न सिमटे। अलबत्ता देश के भीतर से भी वैमनस्य पैदा कर रहे लोगों के खिलाफ कदम उठाए जाते रहें। इन दिनों हर राज्य में पुलिस और अन्य सरकारी निगरानी तंत्र साइबर सेल को मजबूत बनाने और इसके लिये अपने अमले को प्रशिक्षित करने का अभियान भी चलाए हुए है। लिहाजा उम्मीद की जा सकती है। कि इन माध्यमों का सांगठनिक रूप से या निजी तौर पर भी दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा।