बंगाल चुनाव: भाजपा का बड़ा दांव -सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच संघर्ष है, बाकी दलों की स्थिति चुनाव को केवल त्रिकोणीय करने की दिखाई पड़ रही है. नरेंद्र मोदी......

बंगाल चुनाव, भाजपा का बड़ा दांव सरयूसुत मिश्रा बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच संघर्ष है, बाकी दलों की स्थिति चुनाव को केवल त्रिकोणीय करने की दिखाई पड़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह चुनाव अगले लोकसभा चुनाव की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. पश्चिम बंगाल में यदि भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाती है तो इसका सीधा मतलब यह है कि 2024 में लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्पष्ट बहुमत के साथ पुनः प्रधानमंत्री का पद मिलेगा. 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले भारी बहुमत से ही देश में यह माहौल बन गया था कि अगला लोकसभा चुनाव फिर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए होगा. वैसे स्थिति बंगाल चुनाव में भी है. यद्यपि बंगाल में भाजपा के लिए संघर्ष बहुत ज्यादा है. भाजपा सरकार बनाने में सफल होती है या अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर सम्मानजनक स्थिति में पहुंचती है, यह भविष्य में तय होगा. बढ़त तो भाजपा को मिलेगी. इसमें कोई संशय नहीं है पश्चिम बंगाल की राजनीति लंबे अरसे से हिंसा के आधार पर चलती रही है. बंगाल में कम्युनिस्ट शासन के समय हिंसा का जो वातावरण था, उससे मुक्ति के नाम पर तृणमूल कांग्रेस ने संघर्ष किया. जनता ने उसकी सरकार बनवाई. हिंसा के जिस वातावरण को खत्म करने के लिए ममता सरकार में आई थी, वह तो नहीं हुआ, बल्कि कम्युनिस्ट  की संरचना को ही उन्होंने अपना लिया. उससे एक कदम आगे जाकर उन्होंने तृणमूल कार्यकर्ताओं को सीधे सरकार की भूमिका में किसी न किसी रूप में शामिल कर स्थानीय स्तर पर सरकारी लाभ और समस्याओं के समाधान के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को ताकतवर बनाया. आज पुनः वही स्थिति है. भाजपा  तृणमूल कांग्रेस के हिंसक वातावरण को समाप्त करने के लिए राज्य में संघर्ष कर रही है. बीजेपी बिहार जैसे बड़े राज्य में चुनाव जीतने के बाद पांच राज्यों के चुनाव में उतर रही है. इन राज्यों में आसाम अकेला राज्य है, जहां भाजपा को कुछ खोने के लिए है. तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. जो कुछ भी हासिल होगा वह बंगाल से ही होगा. सबसे बड़े राज्य बंगाल में भाजपा के लिए दांव बड़ा है, इसीलिए भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके सभी सहयोगी संगठन पूरी ताकत से चुनाव में लगे हुए हैं. बंगाल ऐसा राज्य है जहां बीजेपी अभीतक  सत्ता के करीब नहीं पहुंच पाई है. पिछले लोकसभा चुनाव में लोकसभा की सीटों में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हुए उसने 18 सीटें जीती थीं. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा पूरी ताकत लगा रही है कि ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर किया जा सके. बंगाल इस दृष्टि से भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां लोकसभा की 40 सीटें हैं. अगर इस राज्य में भाजपा सत्ता में आती है तो लोकसभा में उसकी संख्या इस राज्य से बढ़ सकती है. इसके कारण जो कुछ राज्यों में भाजपा की सीटें कम होंगी उसकी पूर्ति  यहाँ से हो सकती है. बंगाल का भाजपा के लिए एक भावनात्मक मतलब भी है. ऐतिहासिक रूप से बंगाल में बंगाली हिंदू होमलैंड आंदोलन श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1946 में चलाया था. इस आंदोलन की मुख्य मांगी थी  पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल का विभाजन बंगाली आधार पर किया जाए, ताकि हिंदू भारत में रह सकें. इस आंदोलन के कारण पश्चिम बंगाल और यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी के विरुद्ध हिंदू एकजुट हो सके. बंगाल में राष्ट्रवाद के ऐसे पुरोधा हुए हैं, जिन्होंने देश और दुनिया को भारत  की राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन से परिचित कराया. भाजपा बंगाल में स्थानीय बंगाली नेताओं के बीच राष्ट्रवाद की भावना को पहुंचाने में सफल रही है. इसी का परिणाम है कि तृणमूल कांग्रेस और अन्य दलों से बड़े-बड़े बंगाली नेता भाजपा में शामिल हुए हैं. बंगाल में भाजपा का नेतृत्व स्थानीय बंगाली नेताओं के हाथ में है. यहां तक कि बंगाल के बड़े फिल्मी सितारे भी भाजपा का हाथ थाम रहे है. बंगाल के सबसे चहेते सितारे मिथुन चक्रवर्ती भी भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गये हैं. ममता बनर्जी की सरकार के शिल्पकार अनेक नेता पार्टी छोड़कर भाजपा का साथ दे रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस के कई मंत्री और विधायक भी उनका साथ छोड़ चुके हैं. ममता बनर्जी लगातार मोदी और शाह का नाम लेकर बाहरी और बंगाली का मुद्दा खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं , लेकिन भाजपा यह पहले से जानती थी कि ऐसा मुद्दा आएगा. इसलिए भाजपा ने सारा दारोमदार बंगाली  नेताओं को सौंप रखा है, चाहे मुकुल राय हो शुभेंद्र अधिकारी याद दिलीप घोष, सब बंगाल के बड़े कद्दावर नेता हैं. लोकसभा चुनाव परिणाम को ध्यान रखा जाए तो ऐसा लगता है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में उलटफेर कर सकती है. बांग्लादेश से घुसपैठ, रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति, ममता द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण और बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता देने का विषय चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. जिस ढंग से पिछले 40 सालों से बंगाल में मुस्लिम तुष्टीकरण राज्य में सरकार बनाने का केंद्र बना हुआ है, उसके प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरा पक्ष भी एकजुट हो रहा है और वह एकजुटता इस विधानसभा चुनाव में नया  गुल खिला सकती है. पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ, हिंसा और अपराधियों को बढ़ावा दे रही राज्य सरकारें अपने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी गतिविधियां ऐसी गतिविधियां रोकने का प्रयास नहीं करते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार यह बात कह रहे हैं कि ममता सरकार राज्य में केंद्र की जन कल्याणकारी नीतियों को लागू नहीं कर रही हैं. किसानों को जो सम्मान निधि मिलती है वह बंगाल में नहीं मिल रही है. इसी प्रकार और कई योजनाएं हैं जो केंद्र के साथ लड़ाई के कारण ममता राज्य में लागू नहीं करती. बंगाल के सीमावर्ती देश में आर्थिक गतिविधियां जिस ढंग से आगे बढ़ी हैं, वहां आर्थिक विकास दर काफी अच्छी है. प्रधानमंत्री मोदी को बंगाल में बांग्लादेश के हवाले से यह स्थापित करने में सफलता मिलेगी कि ममता सरकार के अड़ियल रवैये के कारण राज्य का विकास कैसे बाधित हो रहा है. ममता बनर्जी स्थानीय और बाहरी के मुद्दे पर बहुत जोर दे रही हैं, लेकिन यह काम करेगा इसमें संदेह है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी बड़ी संख्या में सीटें खो चुकी है. बंगाल का चुनाव देश को एक नई दिशा देगा.यह चुनाव भले ही एक राज्य का हो, लेकिन चुनाव के परिणाम और उसका असर पूरे देश पर पड़ना निश्चित है. भाजपा  राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बंगाल के चुनाव की अहमियत को गंभीरता से समझ रही है. इसीलिए इस चुनाव में कोई भी कसार नहीं छोड़ रही है.