अधिकतर जनजातीय जीवन और प्रथाएं इस प्रकार की होती हैं, जो समाज की मुख्यधारा को लोगों के लिए बहुत आश्चर्यजनक के अनेक प्रकार की लोक-संस्कृतियों के संगम भारत में असंख्य प्रकार की आदिम और कभी-कभी अविश्वसनीय होती हैं|
अधिकतर जनजातीय जीवन और प्रथाएं इस प्रकार की होती हैं, जो समाज की मुख्यधारा को लोगों के लिए बहुत आश्चर्यजनक के अनेक प्रकार की लोक-संस्कृतियों के संगम भारत में असंख्य प्रकार की आदिम और कभी-कभी अविश्वसनीय होती हैं|
आइए हम देखते हैं मध्य प्रदेश के जनजातियों में प्रचलित विवाह प्रथाओं के बारे में.
अड़तालीस आदिमजन-जातियां केवल मध्यप्रदेश में ही बसी हुई हैं। ये जन-जातियां युगों पुराने विभिन्न प्रकार के रस्मों-रिवाजों कोआज भी जीवित रखे हुए हैं। इन रस्मों रिवाजों में अजब-अनोखी विवाह-प्रथाएंकब और कैसे इन जन-जातियों में प्रचलित हुई, यह कोई नहीं जानता लेकिन इनप्रथाओं के जन्म के पीछे धार्मिक विश्वासों का आधार ही सबसे अधिक ठोस कारण है।
भगेली विवाह प्रथा:
मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी जनजाति गोंड है. इस जनजाति में प्रचलित यह विवाह लड़के-लड़की की रजामंदी से होता है। यदि कुंआरेपन में लड़की किसी लड़के से प्रेम करती है और लड़की का पिता इस विवाह के लिए राजी नहीं है तब ऐसी स्थिति में लड़की लड़के से मिलकर घर से भागने की तिथि निश्चित कर लेती है। तिथि तय हो जाने की बात लड़का अपने मित्रों, भाई-बहनों को बता देता है। लड़की निश्चित तिथि को रात्रि के समय भागकर अपने प्रेमी लड़के के घर आ जाती है।
लड़का एकलोटा पानी घर के छप्पर पर डालता है, जिसकी धार वह लड़की अपने सिर पर झेलती है। इसके पश्चात् लड़के की मां लड़की को घर के अंदर ले जाती है। अब वह लड़की गांव की मानी जाती है। गांव के पंच उसकी जिम्मेदारी ले लेते हैं। वे लड़की के पिता को खबर दे देते हैं और उसी रात मंडवा गाड़ कर भांवर करवा देते हैं।
लड़की के माता-पिता कुछ नगद या अन्न के रूप में कुछ खर्ची पाकर राजी हो जाते हैं। इस इस जनजाति में पठौनी विवाह, चढ़ विवाह तथा लमसना विवाह प्रथाएं भी प्रचलित है। यह तीनों प्रथाएं मंडवातरी विवाह कहलाती हैं।
दुल्हन ले जाती है दूल्हा ब्याह कर-
पठोनी विवाह प्रथा में दुल्हन दूल्हा को ब्याह का अपने घर ले जाती है । चढ़ विवाह प्रथा में दूल्हा बारात लेकर दुल्हन के घर जाता है और विधि विधान तथा परंपरागत तरीके से विवाह रस्म पूर्ण कर दुल्हन को विदा करा घर ले आता है। इस इन दोनों विवाहों से हटकर होता है|
लमसना विवाह-
लमसना का अर्थ होता है घर जमाई। इस प्रथा में विवाह से पूर्व ही लड़का अपनी ससुराल में आकर रहने लगता है। वह घर, खेत, जंगल आदि का कार्य करता है तथा सास-ससुर की सेवा करता है। यदि वह लड़की के माता-पिता का हृदिल जीतने में सफल होता है तो ही उसका विवाह उनकी लड़की से होता है। विवाह के बाद भी बेटी दामाद वहीं रहते हैं। इसी प्रकार की विवाह प्रथा कंवर जनजाति में पायी जाती है जिसे 'घरजन विवाह' कहते हैं। बिंवार जनजाति में यह प्रथा 'घरंजिया' कहलाती है
अपहरण विवाह-
देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण जन-जाति 'भील' में यह प्रथा सबसे अधिक प्रचलित है. विवाह का इच्छुक युवक अपनी पसंद की युवती को मौका पाकर संगी-साथियों की मदद से कहीं भगा ले जाता है।
राह-बाजार, राह-पगडंडी और खेत-खलिहान- चरागाह, इन स्थानों से युवती का अपहरण कर लिया जाता है। कुछ दिन तक युवक उस युवती के साथ किन्हीं गुप्त स्थानों पर रहता है और उसके बाद अपने गांव लौट आता है। जाति-बिरादरी को भोज देने के बाद ही उक्त युवक-युवती के विवाह को
जाति-पंचायत से सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है। बाद में युवती के माता-पिता को खबर कर दी जाती है।
सेवा विवाह प्रथा -
यह प्रथा भील एवं खोड जनजाति में प्रचलित है। इसमें विवाह के लिए इच्छुक युवक अपनी मनपसंद युवती जो विधवा या विवाहित हो, को रात्रि में घर के पिछवाड़े से घर में ले आता है। घर में आई युवती को सुबह पास ही स्थित कुएं या घाट पर जाना पड़ता है। वहां पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार युवक की परिचित, नाते-रिश्तेदार महिलाएं उपस्थित रहती हैं। वे महिलाएं उस युवती के सिर पर पानी से भरा घड़ा रखती हैं जिसे लेकर वह युवती होने वाले पति के घर तक आती है। पति उसके सिर से घड़ा उतारता है और घर में अगले हिस्से में प्रवेश कराता है। इस रस्म के बाद विवाह को मान्यता मिल जाती है।
कभी-कभी कोई विवाहित युवती काम की अतृप्ति, गरीबी या अन्य किसी कारण से दूसरा पति कर लेती है। पहले वह विवाहित पति का घर छोड़कर पिता के घर आ जाती है। पिता के घर आकर वह अपनी पसंद के युवक से विवाह करने की बात चलाती है। यदि वह युवक राजी होता है तो युवती पिता के घर से उस युवक के घर चली जाती है। वह युवक उस युवती का नया पति कहलाता है। नया पति
विवाहित युवती के पूर्व पति को कन्या मूल्य देता है। इस कन्या मूल्य को भील 'दापा' कहते हैं। दापा लौटाने के बाद नया पति जाति को भोज देता है। इसके बाद ही विवाह को सामाजिक मान्यता मिलती है।
लमझना विवाह प्रथा-
यह लमसना से मिलती-जुलती प्रथा है। लमझना का अर्थ भी घर जमाई ही होता है। यहप्रथा कोरकू एवं बसोड़ जनजातियों में पायी जाती है। इस प्रथा में लड़की का पिता गांव-गांव जाकर लड़की के लिए योग्य वर की तलाश करता है। लड़का मिल जाने पर वह उसे अपने साथ ही ले आता है। घर आकर वह लड़का अपने होने वाले सास-ससुर की सेवा करता है। यदि वह लमझना एक वर्ष में लड़की को
गर्भवती नहीं कर पाता तो उसे भगा दिया जाता है और लड़की का पिता दूसरा लमझना ढूंढने निकल पड़ता है।
राज-बाजी प्रथा -
परजा जनजाति में पायी जानेवाली इस विवाह प्रथा में युवा लड़का-लड़की जो एक-दूसरे पसंद करते हैं, अवसर पाकर अपने रिश्तेदार के घर भाग जाते हैं। लड़की और लड़के के परिवार
वाले आठ से पंद्रह दिन तक उन्हें ढूंढते हैं। उनके मिल जाने पर गांव की पंचायत के समक्ष उनका प्रकरण रखा जाता है। लड़की के राजी होने पर तो कोई अपराध नहीं माना जाता किंतु जबरन भगाकर ले जाने के अपराधमें लड़के को जाति-प्रथा के अनुसार आर्थिक दण्ड भुगतना पड़ता है। लड़की के राजी होने पर पंचायत उनके विवाह को वैध घोषित कर देती है।
इन विवाह प्रथाओं के अतिरिक्त मध्यप्रदेश की जनजतियों में अनेक प्रकार की विवाह प्रथाएं प्रचलित हैं। बिंझवार जनजाति में गुरावर, चूड़ी पहनाना, बूंदा, डढ़रियां, पेठू इत्यादि विवाह प्रथाएं प्रचलित हैं। दो व्यक्ति अपनी-अपनी बहनों का विवाह एक दूसरे से कर देते है। इस विवाह को गुरावर कहते हैं। बड़े भाई की मृत्यु हो जाने पर छोटा भाई भाभी से विवाह कर लेता है। इसे चूड़ी पहनाना कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति ऐसी लड़की से विवाह करता है जिसकी मंगनी हो चुकी होती है तो इसे बूंदा कहते हैं। कभी-कभी बहुत गरीब बिझवार अपनी प्रेमिका को भगाकर ले जाता है। वह उसे लेकर ऐसे गांव में जाता है जहां वह रहना चाहता है। उस गांव के समस्त वासियों को वह गरीब बिझवार रोटी देता है। तब गांव वाले उसके विवाह को मान्यता देकर गांव में रहने की इजाजत देते हैं। इस विवाह को डढ़रिया कहते हैं। कोई युवती अपनी पसंद के युवक के घर में घुस आती है और लाख समझाने के बावजूद भी घर से वापस नहीं जाती तब युवक को उससे विवाह करना पड़ता है। इस विवाह को पेठू विवाह कहते
हैं। इस प्रकार के विवाह परजा जनजाति में भी पाए जाते हैं।
मध्यप्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने कहा है कि व्यापारीगण या फेरी वाले बिजली के वितरण ट्रांसफार्मर
एवं पोल के आसपास हाथ ठेले या गुमठियां न लगाएं। ऐसा करने से कभी भी बड़ी दुर्घटना हो - 25/04/2024
मुख्य
निर्वाचन पदाधिकारी श्री
अनुपम राजन ने बताया है कि
लोकसभा निर्वाचन-2024 के निर्वाचन
कार्यक्रम के अनुसार चौथे चरण
के लिये नाम निर्देशन पत्र
दाखिल करने की प्रक्रिया आज
सम्पन्न हुई। चौथे चरण - 25/04/2024
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्री अनुपम राजन ने प्रदेश के सभी मतदाताओं से लोकतन्त्र के महापर्व में अपनी
सहभागिता करते हुए लोकसभा निर्वाचन-2024 के विभिन्न चरणों में मतदान जरूर करने का आह्वान किया - 25/04/2024
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्री अनुपम राजन ने बताया है कि लोकसभा निर्वाचन-2024 के दूसरे चरण में प्रदेश
के छह लोकसभा संसदीय क्षेत्रों में शुक्रवार, 26 अप्रैल को मतदान होगा। दूसरे चरण की छह लोकसभ - 25/04/2024
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्री अनुपम राजन ने बताया कि लोकसभा निर्वाचन 2024 के दूसरे चरण के लिये मतदाताओं
को क्यूआर कोड वाली मतदाता सूचना पर्ची वितरित की गई है। क्यूआर कोड युक्त मतदाता सूचन - 25/04/2024
लोकसभा निर्वाचन-2024 के दूसरे चरण में प्रदेश के छह लोकसभा संसदीय क्षेत्रों में शुक्रवार, 26 अप्रैल को
मतदान होगा। लोकसभा संसदीय क्षेत्र क्र.-6 टीकमगढ़ (अजा), क्र.-7 दमोह, क्र.-8 खजुराहो, क्र.- - 25/04/2024