दानवों के सिर पर क्या सचमुच सींग होते थे? -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

शास्त्रों और दूसरी पुरानी किताबों में राक्षसों या दानवों के बारे में बताया गया है कि उनके सिर पर सींग होते थे.

दानवों के सिर पर क्या सचमुच सींग होते थे? -दिनेश मालवीय शास्त्रों और दूसरी पुरानी किताबों में राक्षसों या दानवों के बारे में बताया गया है कि उनके सिर पर सींग होते थे. यह भी बताया गया कि उनके दांत बहुत बड़े, रंग काला स्याह और चेहरा बहुत डरावना होता था. अक्सर मन में आता है कि, क्या सचमुच ऐसा होता था? मुझे लगता है कि पुराने समय में साहित्य मूलत: काव्य के रूप में लिखा गया था. काव्य में रूपक, अलंकर, अतिरंजना, अभिव्यक्ति में अनूठापन आदि कुछ ऐसे गुण आवश्यक रूप से होते ही हैं, जो विषय को अधिक प्रभावी बनाने के लिए प्रयोग होते हैं. राक्षसों का ऐसा रूप शायद उनकी वीभत्सता और दानवीय प्रवृत्तियों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए ही किया गया होगा. मेरी बात की  पुष्टि इस तथ्य से होती है कि आज ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं, जो ऊपर से देखने में बिल्कुल सामान्य मनुष्य लगते हैं, लेकिन उनके काम दानवों को भी शर्मिंदा करने वाले होते हैं. क्या बच्चियों के साथ दुराचार कर उन्हें घोर यातनाएं देकर मारने वालों के सिर पर सींग होते हैं? क्या सरेआम आम मासूमों का क़त्ल करने वालों के सिर पर सींग होते हैं? क्या बहुओं को ज़िन्दा जालाने या यातना देने वालों के सिर पर सींग होते हैं? क्या बेटियों को गर्भ में ही मार डालने वालों के सींग होते हैं? क्या और भी वीभत्स कर्म करने वालों के सिर पर सींग होते हैं? जी, ऐसा देखने में तो नहीं आया. वीभत्स से वीभत्स और घोर पाप कर्म करने वाले लोग भी देखने में हम जैसे ही होते हैं. तो फिर सवाल यह उठता है कि दानव या राक्षस कौन होते हैं? इसका जवाब भी हमारे शास्त्रों और अन्य पुस्तकों में ही है. मनुष्य के भीतर दो प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं- दैवीय और आसुरी. आसुरी वृत्ति को कुछ धर्मों में शैतान का रूपक भी दिया गया है. कहा गया है कि इंसान के मन में शैतान भी होता है, जो उसे बुरे काम करने की ओर धकेलता था. कुछ लोग इसे हैवान कहते हैं तो कुछ लोग अन्य नामों से पुकारते हैं. मन में जब जो प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है, मनुष्य उसी तरह व्यवहार करने लगता है. ग्रंथों में मनुष्य के भीतर जो दानवीय प्रवृत्तियाँ हैं, उन्हें ही उक्त प्रकार से भयानक रूप में प्रस्तुत किया गया है. इसके अलावा आजकल के इलेक्ट्रोनिक मीडिया, फिल्मों आदि ने इस और बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत कर दिया. ये तो इस हद तक जाते हैं कि आने सीरियल्स में राक्षस भी कार्टून दिखाई देता है. यह सही है कि संसार में अनेक प्रकार की प्रजातियाँ हैं, जिनमें नाग, किन्नर, गन्धर्व, देव, दानव आदि शामिल हैं. ये अब प्राय: देखने को नहीं मिलते. कहीं अदृश्य रूप से उनका अस्तित्व हो तो और बात है. हो सकता है, दानव प्रजाति के लोग देखने में भयंकर दिखाई देते रहे हों. आज भी संसार में अनेक प्रजातियाँ ऎसी हैं, जो हमारे शास्त्रों में बताये गये दानवों जैसी ही दिखती हैं. लेकिन ये लोग दानव नहीं होते. सिर्फ उनके शरीर की बनावट ऐसी होती है. वास्तव में दानव या राक्षस वे लोग होते हैं, जो इस दुनिया को सिर्फ अपनी बपौती मानते हैं. जो चाहते हैं, कि सभी लोग उनकी तरह सोचें, वे जो भी करें उसे सभी लोग सही कहें, उनके विपरीत सोचने वालों को नष्ट करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार हैं, संसार के सभी सुख-साधनों और संसाधनों पर केवल उनका अधिकार हो, वे जिसे चाहें, जो दे दें और जिससे जब जो चाहें छीन लें. दुनिया में केवल उनकी ही बात मानी जाए, सब लोग उनसे डरें और हर चीज पर सिर उनका नियंत्रण हो. आधुनिक विकसित देश यह कहते हैं कि हम बहुत सभ्य श्रेष्ठ हैं, लेकिन सच पूछिए तो वे बहुत क्रूर और अधिकारवादी हैं. उनमें दुनिया की बादशाहत की चाह है. इसके चलते ही उनके बीच बहुत विनाशक हथियारों की होड़ लगी है. वे पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व क़ायम करना चाहते हैं. कुछ लोग ऐसा धर्म के नाम पर भी करना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि सिफ उनका धर्म, उनकी सभ्यता, उनकी संस्कृति और उनकी विचारधारा जीवित रहे और बाक़ी सब या तो ख़त्म हो जाएँ या उनके अधीन हो जाएँ. जो लोग उनकी बात नहीं मानेंगे वे उन्हें नष्ट कर देंगे.  कोई चाहता है कि उसकी फौजी ताक़त से दुनिया उनके नियंत्रण में आ जाए. जो लोग दूसरों को अपने पीछे लाने के लिए शांतिप्रिय कहे जाने वाले तरीके अपनाते हैं, वे भी प्रकारांतर से इसी प्रवृत्ति के शिकार हैं. वे यह क्यों नहीं सोचते कि दुनिया में सबको अपनी तरह से जीने और सोचने का अधिकार है. यह कैसे मुमकिन हो कि पूरी दुनिया एक ही विचारधारा को माने, एक ही धर्म का पालन करे, सबकी एक ही संस्कृति हो, किसीको भी स्वतंत्र रूप से सोचने का अधिकार न हो, सबकुछ यंत्रवत हो जाए. यह न कभी मुमकिन हुआ है और न होगा. मानवता के इतिहास में बड़े-बड़े खूंखार लोग हुए, जिन्होंने दुनिया को अपने नियंत्रण में करने और अपना वर्चस्व स्थापित करने की जिद और सनक में लाखों लोगों की हत्याएं करवा दीं. हिटलर ने करीब दस लाख लोगों को मरवा दिया. चंगेज़ खान, तेमूर लंग, नादिर शाह जैसे लोगों के सिर पर तो करोड़ों लोगों को मरवाने का पाप है. आज भी अनेक ऐसे व्यक्ति मौजूद हैं. उनके अपने संगठन भी हैं. वे हर चीज की अपने तरीके से व्याख्या करते हैं और केवल ख़ुद को ही सच मानते हैं. अनेक सनकी तानाशाह पहले भी हो चुके हैं और आज भी हैं. कुल मिलकर दानव और राक्षस आप-हम जैसे ही हैं. हो सकता है पहले कभी उनकी बनावट में कोई फर्क रहा हो, लेकिन आज के दानव तो बाकायदा कोट-पेंट और टाई लगाए हुए और बहुत सभ्य दिखने वाले भी हैं. उनके सींग नहीं हैं. शास्त्रों और दूसरी किताबों में उनका जो चित्रण है, वह मुझे सिर्फ उनकी क्रूरता की भयंकरता को दिखाने के लिए की गयी लगती है. लेकिन न आपने उन्हें देखा और न हमने. बहरहाल, आज के दानव तो सामने ही हैं. क्या उनके सिर पर सींग हैं?