हरिद्वार क्यों नहा रहे हैं करोड़ों लोग गंगा, क्या सचमुच पाप धुल जाते हैं -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

आजकल हरिद्वार में कुम्ब मेला चल रहा है. इसमें देश के कोने-कोने से करोड़ों लोग गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. इस एक डुबकी के लिए वे न जाने कितने कष्ट....

हरिद्वार क्यों नहा रहे हैं करोड़ों लोग गंगा क्या सचमुच पाप धुल जाते हैं -दिनेश मालवीय आजकल हरिद्वार में कुम्ब मेला चल रहा है. इसमें देश के कोने-कोने से करोड़ों लोग गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. इस एक डुबकी के लिए वे न जाने कितने कष्ट उठाकर यात्रा करते हैं. आजकल तो कोरोना महामारी का प्रकोप भी चल रहा है. इसके बाबजूद श्रद्धालुओं की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई. इसके पहले हाल ही में प्रयाग में माघ मेला लगा, जिसमें करोड़ों लोगों ने गंगाजी में डुबकी लगायी. आखिर ऐसा क्या है गंगा नदी में? भारत में युगों-युगों से यह मान्यता है कि किन्हीं विशेष ग्रह-नक्षत्रों की ख़ास स्थति में गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं. इस मान्यता के विरोध में बात करने वाले भी कुछ लोग रहे हैं. उनका सवाल है कि क्या गंगा नहाने से सचमुच पाप धुल जाते हैं? उनके अनुसार, यह ढकोसला है. अनेक प्रसिद्ध संतों ने कहा है कि अच्छे कर्म और आचरण हों तो गंगा नहाने की ज़रूरत नहीं है -“मन चंगा तो कठौती में गंगा”. इन संतों की बात उनके नज़रिए से सही हो सकती है, लेकिन युगों-युगों से चली आ रही मान्यता पर वैज्ञानिक तथ्यों के साथ बात स्पष्ट करने में सहायता मिलेगी. गंगा-स्नान के पीछे बहुत गहरा मनोवैज्ञानिक तथ्य छुपा है. किसी भी पाप या अपराध करने वाले के अवचेतन में अपराध बोध बहुत गहराई से बैठ जाता है. वह ऊपर से कितना ही सहज दिखता हो, लेकिन भीतर से उसे अपराध बोध बुरी तरह कचोटता रहता है. मशहूर शायर कृष्ण बिहारी नूर का बड़ा प्रसिद्ध शेर है कि,- "ज़मीर कांप तो जाता है आप कुछ भी कहें वो हो गुनाह से पहले के हो गुनाह के बाद" यह मनोविज्ञान का बहुत अकाट्य तथ्य है, कि पाप या अपराध से उपजा ग्लानि का बोध मरने तक व्यक्ति के साथ रहता है. ऐसा व्यक्ति जीवन भर चैन की नींद सो नहीं पाता. बड़े से बड़ा पेशेवर अपराधी भी एकांत में बहुत पछताता है. हमारे पूर्वजों ने इसी ग्लानि और अपराध बोध को कम या समाप्त करने के लिए गंगा नहाने से पाप मुक्ति और मोक्ष की बात कही है. पाप या अपराध करने वाला जब इस विश्वास के साथ गंगा में डुबकी लगाता है, कि इससे मेरे पाप धुल जाएँगे, तो उसके मन में जो ग्लानि का भाव है वह दूर हो जाता है. पूरी तरह दूर नहीं भी हो तो, वह इतना कम तो हो ही जाता है, कि वह उसे पहले की तरह नहीं कचोटता. किन्हीं ख़ास ग्रह स्थति की बात का भी अपना महत्त्व है. इससे उसके मन में यह भावना और अधिक गहराई से उतर जाती है कि उसके द्वारा किये गये पाप का मोचन हो जाएगा. इसके अलावा, गंगा में डुबकी का उसे एक लाभ और होता है. जब उसे यह अनुभव होता है कि गंगा में नहाकर मेरे पाप धुल गए हैं, तो उसके मन में भविष्य में ऐसे कर्म नहीं करने का संकल्प सहज ही उपजता है. वह निश्चय करता है के अभी तक मैंने जो कर लिया, सो कर लिया, लेकिन अब आगे और ऐसा नहीं करूँगा. आजकल तो तीर्थाटन बहुत कुछ पर्यटन का रूप लेता जा रहा है, जिसके कारण मन पर तीर्थयात्रा का पहले जैसा प्रभाव नहीं होता. लेकिन पहले तीर्थयात्रा से लौटकर लोगों का जीवन बदल जाता था. तीर्थयात्रा के मार्ग इतने दुर्गम और कठिन होते थे कि यात्री के बचने की आशा बहुत कम की जाती थी. इसीके चलते तीर्थयात्रा पर जाते समय उसके गाँव-नगर के लोग उसे गाँव या शहेर के छोर तक पहुंचाने आते थे. यह माना जाता था कि अब उसने फिर शायद ही मिलना हो. यात्रा पर जाने वाला भी यही मानता था, कि अब उसका लौटना शायद ही हो. तीर्थयात्री के जीवित लौटने पर उनका समारोह के साथ स्वागत किया जाता था. गाँव में उत्सव मनाया जाता था. लौटने वाले तीर्थयात्री के मन में यह भाव दृढ़ हो जाता था, कि अब उसे जो जीवन मिला है, वह भगवान् का प्रसाद है और शेष जीवन को अच्छा आचरण और परोपकार करते हुए बिताना है. इस प्रकार तीर्थयात्रा से लौटकर उनका जीवन पूरी तरह रूपांतरित हो जाता था. पाप या अपराध करने की बात तो अलग, वे ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं पाते थे. सिर्फ गंगा नहाने की बात नहीं है, अन्य पवित्र मानी जाने वाली नदियों के बारे में भी युगों से इस प्रकार की धारणाएँ प्रचलित हैं. संत और ज्ञानी लोग पाप और अपराध कर्म करने वालों को प्रायश्चित के जो उपाय बताते हैं, उनका  मकसद भी उन्हें अपराध और ग्लानि बोध से मुक्त कराना होता है. उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने परिस्थिति के कारण व्यभिचार किया हो और वो अपराध बोध से ग्रसित होकर किसी संत के पास जाता है, तो संत उससे कहते हैं कि वह ग़रीबों को कुछ दान कर दे या भूखों को भोजन करा दे या किसी गरीब की कन्या का विवाह करवा दे. उसे किसी मंत्र या स्त्रोत का पाठ करने को कह देते हैं. संत की इस बात को मानकर यदि सम्बंधित व्यक्ति वैसा करता है, तो उसके मन से अपराध बोध बहुत कम हो जाता है. कम से कम वह उतना तो नहीं रहता कि उसकी रात की नींद और दिन का चैन छीन जाए. भारत ही नहीं अनेक देशों में इस तरह की मान्यताएं और परम्पराएँ हैं. कुछ माह पहले अखबार में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का एक फोटो छपा था. इस फोटो में पुतिन वर्फीले ठण्डे पानी में आधे खड़े होकर नहा रहे थे. इससे जुड़े समाचार में बताया गया कि रूस में मान्यता है कि उस ख़ास दिन वर्फीले पानी में नहाने से पाप धुल जाते हैं और समृद्धि आती है. यह आश्चर्य की बात थी. रूस बहुत लम्बे समय तक साम्यवादी देश रहा है जिसमें धर्म आदि का कोई स्थान नहीं रहा. लेकिन इस तरह की मान्यताएँ वहाँ आज भी जीवित हैं. ईसाइयों में कन्फेशन के पीछे भी मकसद यही होता है. अपना पाप पादरी को बता देने से वह आश्वस्त हो जाता है, कि ईश्वर उसके अपराध को माफ़ ज़रूर कर देंगे. अन्य धर्मों में भी इस तरह की कोई न कोई मान्यता मिलती है. हमारे पूर्वजों ने मनुष्य के चित्त और उसकी ग्रंथियों को जितनी गहराई से समझा है, उतना शायद ही किसी और ने समझा हो. इसी कारण मनुष्य के चित्त को अपराध और ग्लानि के भाव से मुक्त कर उसे मानसिक शान्ति के इस तरह के उपाय बताये गये हैं. गंगा में नहाने य कोई अन्य प्रायश्चित करने से जब उसका मन अपराध बोध से मुक्त हो जाता है और जब भविष्य में ऐसा नहीं करने का संकल्प उसके मन में उदित हो जाता है, तो निश्चय ही वह मुक्ति का पात्र हो जाता है. आखिर मुक्ति का मतलब अपने विकारों से मुक्त होना ही तो है.