हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (४२)


स्टोरी हाइलाइट्स

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (४२)-जब गाँधी ने नमक कानून तोड़ा उसी समय डॉ..हेडगेवार ने तोड़ा था जंगल कानून, दोनों का तरीका भी एक..Mahatma gandhi

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (४२)

जब गाँधी ने नमक कानून तोड़ा उसी समय डॉ..हेडगेवार ने तोड़ा था जंगल कानून, दोनों का तरीका भी एक
 मनोज जोशी                            (गतांक से आगे)

गाँधीजी की दाण्डी यात्रा की वर्षगांठ के साथ ही आजादी की ७५ वीं वर्षगांठ के आयोजनों की शुरुआत हो गई है। अक्सर गाँधीजी और संघ की राहें अलग-अलग होने की बात कही जाती है। 

लेकिन किसी विरोध का चश्मा लगाने की बजाय निष्पक्षता से इतिहास का अध्ययन करें तो पता लगता है दोनों एक-दूसरे के समानांतर चल रहे थे। 

गाँधीजी भी हिंदू समाज की दुर्बलता को दूर करना चाहते थे, लेकिन उनका मुख्य ध्येय राजनीतिक स्वतंत्रता था और डॉ. हेडगेवार ने हिंदू समाज की दुर्बलता को दूर करने को अपना लक्ष्य बनाया, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में भी वे सक्रिय रहे।

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इतिहास में से जानकारी निकालें तो पता चलता है कि १९३० में जब गाँधीजी दाण्डी यात्रा निकाल रहे थे उसी समय डॉ. हेडगेवार ने जंगल कानून तोड़ा था और उन्हें ९ माह का सश्रम कारावास हुआ। उन्हें अकोला जेल में रखा था। 

गाँधीजी के नमक सत्याग्रह की तरह इसे जंगल सत्याग्रह नाम दिया गया था। एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि वनवासियों से अंग्रेजों द्वारा छीने गए अधिकारों का सबसे पहले विरोध संघ ने ही किया था। लेकिन ऐसा लगता है जैसे आज इस जंगल सत्याग्रह को भूला दिया गया है। 

Mahatma Gandhi विदर्भ के श्री माधव श्रीहरि अणे (बापूजी अणे) ने डॉ. हेडगेवार जी से संपर्क कर स्थानीय स्तर पर सत्याग्रह की रणनीति पर विचार विमर्श किया। डा. हेडगेवार ने कोलकाता की अनुशीलन समिति, कांग्रेस और हिंदू महासभा में सक्रियता के बाद १९२५ में संघ की स्थापना की थी। 

१९३० तक संघ का कार्य तत्कालीन मध्यप्रांत में ही प्रभावी नजर आने लगा था। रणनीति के अनुसार बापूजी अणे १५ जुलाई १९३० को यवतमाल जिले के पुसद में ‘‘जंगल सत्याग्रह’’ करते हुये गिरफ्तार हो गये। फिर डॉ. हेडगेवार १६ जुलाई को साथियों सहित सत्याग्रह के लिये यवतमाल पहुंचे। 

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स्थानीय सत्याग्रहियों से विचार करके २१ जुलाई को पुसद में सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया। डा. हेडगेवार अपने तीन साथियों के साथ ‘सत्याग्रह स्थल’ रवाना हुए, ५ किलोमीटर की पद यात्रा में सैकड़ों स्वयंसेवक एवं आम जनता साथ हो गई थी। 

डॉ. हेडगेवार जब सत्याग्रह स्थल पहुंचे, तब तक पांच हजार से अधिक लोग समर्थन में जुट गए  थे। डॉ. हेडगेवार ने रिजर्व्ड फारेस्ट एरिया से घास काटकर, अपनी गिरफ्तारी दी। डॉक्टर जी के साथ गए सत्याग्रही जत्थे में अप्पा जी जोशी (बाद में सरकार्यवाह), दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रांत प्रचारक) आदि १२ स्वयंसेवक शामिल थे।  

उसी दिन उन पर मुकदमा चलाया गया और ९ माह का सश्रम कारावास दिया गया। उन्हें अकोला जेल भेजा गया। कुछ दिनो बाद ‘‘चिरनेर नामक स्थान में ‘‘जंगल सत्याग्रह’’ हुआ, जिसमें सत्याग्रहियों एवं पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई। पुलिस की गोली से ८ सत्याग्रही शहीद हो गये। 

मध्य प्रांत के कटनी में मोतीलाल ताम्रकार, राम गोपाल ताम्रकार, बैतूल में डा माखनलाल चतुर्वेदी, बालाघाट में अंबर लोधी, किशनलाल, हरदा में सीताचरण दीक्षित आदि के नेतृत्व में जंगल सत्यागृह हुए। वर्तमान झारखण्ड में बिरसा मुण्डा ने भी इसी कानून के खिलाफ क्रांतिकारी संघर्ष किया था।

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एक खास बात यह भी है कि इस सत्याग्रह में भाग लेने के लिए डॉ. हेडगेवार ने संघचालक का दायित्व  डॉ. लक्ष्मण वासुदेव परांजपे को सौंपा था। यानी वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता के साथ संघ के काम को प्रभावित नहीं होने देना चाहते थे। 

संघ के भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के और भी उदाहरण हैं, लेकिन यह इस श्रृंखला का विषय नहीं है। पुसद में आयोजित जनसभा में डॉ. हेडगेवार ने कहा था- स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के बूट की पॉलिश करने से लेकर उनके बूट को पैर से निकालकर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं। 

मैं तो इतना ही जानता हूं कि देश को स्वतंत्र कराना है। अभा शारीरिक शिक्षण प्रमुख (सर सेनापति) मार्तण्ड जोग जी, नागपुर के जिला संघचालक अप्पा जी ह्ळदे आदि स्वयंसेवकों के जत्थों ने भी सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए १०० स्वयंसेवकों की टोली बनाई, जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे। 

८ अगस्त को गढ़वाल दिवस पर धारा १४४ तोड़कर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्वयंसेवक घायल हुए। १९३१ के दशहरे पर  डॉक्टर जी जेल में थे, उनकी अनुपस्थिति में गांव-गांव में संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढ़ा गया, जिसमें कहा गया था- देश की परतंत्रता नष्ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्मनिर्भर नहीं होता, तब तक रे मना! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं।

जैसा मैंने शुरू में लिखा कि गाँधीजी भी हिंदू समाज की दुर्बलता को दूर करना चाहते थे उसके लिए हिंदू धर्म क्या है’ नामक पुस्तक में से गाँधीजी का केवल एक वक्तव्य यहां देना चाहूंगा। “यदि मुझसे हिंदू धर्म की व्याख्या करने के लिए कहा जाए तो मैं इतना ही कहूंगा- अहिंसात्मक साधनों द्वारा सत्य की खोज।

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कोई मनुष्य ईश्वर में विश्वास न करते हुए भी अपने आप को हिंदू कह सकता है। सत्य की अथक खोज का ही दूसरा नाम हिंदू धर्म है। यदि आज वह मृतप्राय निष्क्रिय विकासशील नहीं रह गया है तो इसलिए कि हम थककर बैठ गए हैं और ज्यों ही थकावट दूर हो जाएगी त्यों ही हिंदू धर्म संसार पर ऐसे प्रखर तेज के साथ छा जाएगा ऐसा कदाचित पहले कभी नहीं हुआ। अतः निश्चित रूप से हिंदू धर्म सबसे अधिक सहिष्णु धर्म है।”

यदि यह नहीं बताया जाए कि यह वक्तव्य गाँधीजी का है तो कोई भी इसे डॉ. हेडगेवार का समझ लेगा।यंग इंडिया नवजीवन हरिजन जैसे पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर गांधी जी द्वारा लिखे गए लेखों का संग्रहण हिंदू धर्म क्या है  नाम की पुस्तक में हमें मिलता है। नेशनल बुक ट्रस्ट ने १९९५ में यह पुस्तक प्रकाशित की थी

(क्रमशः)
यह श्रृंखला मेरे  फेसबुक और एक news website - www.newspuran.com पर भी उपलब्ध है।
साभार: MANOJ JOSHI - 9977008211

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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