झूठ बोलने से आत्मा मरती है, ब्रह्माँड के रहस्य -67 देवताओं का संघ -3


स्टोरी हाइलाइट्स

ब्रह्माँड के रहस्य:मनुष्य मन से जैसा संकल्प करता है, वह संकल्प प्राण पर आतभा है। संकल्प करते ही प्राण पर धक्का लगता है। धक्का खाकर जब प्राण बाहर..

झूठ बोलने से आत्मा मरती है             ब्रह्माँड के रहस्य -67 देवताओं का संघ -3   रमेश तिवारी मनुष्य मन से जैसा संकल्प करता है, वह संकल्प प्राण पर आतभा है। संकल्प करते ही प्राण पर धक्का लगता है। धक्का खाकर जब प्राण बाहर निकलने लगता है तो शरीर में विद्यमान वायु में धक्का लगता है। कहने का तात्पर्य है कि प्राण व्यापार का असर वायु पर पड़ता है। वायु से ही मनुष्य की मुखाकृति पर सूक्ष्म दशाओं अथवा विचार तरंगों का वितान (प्राक्टय) निर्मित हो जाता है। सूक्ष्म तत्ववेत्ता और विद्वान पुरुष इन्हीं तरंगों के द्वारा मनुष्य के मन की इच्छा अर्थात् संकल्प जान लेते हैं। ये भी पढ़ें ब्रह्माँड के रहस्य- 66 देवताओं का संघ- 2 हम सब दैनंदिन व्यवहार में भी ऐसा अनुभव करते हैं। कई लोग बहुत खुश दिखाई देते हैं, तो हम तपाक से कहने लगते हैं- अरे भाई आज तो खिल रहे हो। बडी़ खुशी दिख रही है, चेहरे पर। कोई लाटरी लग गयी क्या। और कोई मुंह लटकाये दिखा तो भी कहने लगते हैं..! भाई, तुम्हारी मुंइयां क्यों लटक रही है। क्या गम है। दोनों ही स्थितियों, खुशी और गम, में संबंधित की आत्मा में व्याप्त आनंद अथवा विषाद चेहरे पर आ ही जाता है। मन जिस समय संकल्प करता है, उसी समय शांत और स्थिर अंतः प्राण वायु क्षुब्ध हो जाता है। क्षुब्ध अंत: वायु, प्राण के धक्के से रोमावलियों से बाहर निकलता है। जोर का धमाका होते ही हमारे रोंगटे खडे़ हो जाते हैं न..!  बाहर निकल कर यह अंतः वायु शरीर के चारों ओर वेष्ठित बाह्य वायु पर धक्का मारता है। इससे जिस प्रकार की लहर अंतः वायु की होती है, उसी प्रकार की लहर बाह्य वायु में भी उत्पन्न हो जाती है। इन्ही लहरों (वायु -उर्मि -मंडल) के द्वारा विद्वानवेत्ता, मनुष्य के मन की बात जान लेते हैं। "वातो देवेभ्य आचष्टे यथा पुरुष ते मनः"। अब हम फिर देवताओं के मध्य चलते हैं! सभी देवताओं ने अपनी जो सर्वाधिक प्रिय वस्तु थी, वह चीज जमानत में रख दीं। वैदिक भाषा में इन वस्तुओं को "तनु" और प्रिय "स्थान" कहा है। और एक बार वही संकल्प दोहराया कि, जो भी प्रतिज्ञा से पीछे हटेगा- उसको संघ से तो निकाला ही जायेगा। अलग से जमानत भी जब्त हो जायेगी। इस मुद्दे पर सहमति बन गई। संकल्प लागू हो गया और उस प्रतिज्ञा का सुखद परिणाम यह हुआ कि तभी से देवता, जो ब्रह्माँड और पिंड में हैं, सत्यव्रती है। अर्थात् सत्य पर दृढ़ रह कर कभी भी असत्य पथ का अनुसरण नहीं करते। ये भी पढ़ें      ब्रह्माँड के रहस्य -65 देवताओं का संघ -1  यदि प्रतिज्ञा का अतिक्रमण करेंगे तो क्या वे मूल स्वरूप में रह पायेंगे? कदापि नहीं। प्रतिज्ञा तोड़ते हुए वे मिथ्या बोलेंगे, सत्य मार्ग से च्युत होंगे तो यही उनके नाश का कारण बनेगा। सार यह है कि शपथ लेना ही नहीं चाहिये। और यदि कोई बहुत बडा़ काम आ जाये और शपथ लेना ही पडे़ तो फिर शपथ को निभाना भी चाहिये, भले ही आपके प्राण ही क्यों न चले जायें। हम आगे घृत से बनने वाले वायु और उसके अनेक प्रकारों पर भी चर्चा करेंगे। कौन सी वायु प्राण ले लेती है, और किस वायु से आनंद प्राप्त होता है। याने कि हमारी तबियत हरी हो जाती है। सोमयाग एक अत्यंत जटिल और वैज्ञानिक यज्ञ विधि है। इसमें सोम की आहूतियां दी जाती हैं। सोम वायु है, आक्सीजन है। सोम हमारे जीवन का अति आवश्यक अंग है। फिर वायु के भी विभिन्न प्रकार हैं। घृत भी वायु रूप है। सोम याग में घृत की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं क्योंकि अग्नि से ही दुग्ध बनता है। और दुग्ध से घृत। सोम (आक्सीजन न हो तो अग्नि जल ही नहीं सकती)। अग्नि न जले (नाभि के नीचे) तो देवता भी जीवित नहीं रह सकते। क्योंकि अग्नि से ही तो 33 देवता उत्पन्न होते हैं। इस सत्य विज्ञान, सत्यबल को जानकर जो मनुष्य सत्य बोलता है, उसकी जित (सम्पत्ति) अनपज्यय रहती है। अर्थात् कभी नष्ट नहीं होती। देवताओं ने वायु को सामने कर साक्षी में तनूनपात किया था। किंतु वायु तो दिखाई ही नहीं देती! तो फिर.! शपथ कैसे ली गई होगी। वह भी सोमयाग में.! तो मिलते है। तब तक विदा। धन्यवाद।