बारिश में आयुर्वेद की ऋतुचर्या का महत्व...


स्टोरी हाइलाइट्स

आयुर्वेद की "ऋतुचर्या" बहुत उपयोगी है वर्षाकाल में Lifestyle during Rainy Season - Varsha Ritucharya बारिश का मौसम आता है तो वह सूखी पृथ्वी को राहत प्रदान करता है, जो कि भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन यह मौसम अपने साथ कई रोगों और बीमारियों को भी लाता है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि बारिश के मौसम के दौरान हर किसी को अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए और खाये जाने वाले आहार की भी विशेष देखभाल करनी चाहिए। आयुर्वेद, चिकित्सा की पारंपरिक हिंदू प्रणाली है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया है और चार वेदों में से अंतिम वेद अथर्ववेद में आयुर्वेद चिकित्सा को सम्मिलित किया है। हजारों वर्ष पुराना, आयुर्वेद समग्र स्वास्थ्य के लिए जीवन के ज्ञान का प्रतीक है, जो आज की दुनिया में स्वास्थ्य को अच्छा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आयुर्वेद ने मौसम को शरद ऋतु (Autumn), वर्षा ऋतु (Monsoon), ग्रीष्म ऋतु (summer), वसंत ऋतु (Spring), हेमंत ऋतु (Early Winter) और शिशिर ऋतु (Late Winter ) 6 वर्गों में विभाजित किया गया है | प्रत्येक मौसम की एक विशेष आहार योजना है, जो हमारे शरीर में पृथ्वी के अंश हवा, अग्नि और पृथ्वी के रूप में वात, पित्त और कफ को संतुलित बनाये रखते हैं। यह हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा हैं क्योंकि जब यह तत्व संतुलित स्थिति में नहीं रहते हैं, तो हमरे शरीर के लिए अत्याधिक हानिकारक बन जाते हैं और यह स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। आयुर्वेद में दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, स्वस्थवृत्त, सद्वृत्त, आहार, विहार आदि स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा के उपयोगी और रणनीतिक उपाय हैं। आयुर्वेद की भाषा में कहें तो अनागत रोगों का प्रतिकार या विकार-अनुत्पत्ति में सहायक है। आज की चर्चा वर्षाऋतु में स्वास्थ्य रक्षा के विविध उपायों पर केन्द्रित है,  वर्षा ऋतु आते आते, शिशिर, बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु के प्रभाव से कमजोर हुये शरीर की अग्नि या भूख वात आदि दोषों से मंद पड़ती जाती है। प्रायः बादलों की छाया, नमी के कारण शीतल हुई हवा, मिट्टी में पानी पड़ने पर निकलने वाली शुरुआती भाप, भोजन का अम्लविपाक होना और सतही जल में प्रदूषण बढ़ जाने से जठराग्नि मंद हो जाती है। वात कुपित होकर अन्य दोषों पर भी प्रभाव पड़ता है। इस कारण वर्षा ऋतु में आहार-विहार में बड़ी सावधानी रखना आवश्यक है। आहार-विहार ऐसा हो जिसमे मुख्यतया वात के शमन के साथ ही कफ और पित्त का शमन भी हो। खान-पान में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब तक पहले खाया हुआ भोजन ठीक से पच न जाये, तब तक दुबारा भोजन नहीं करना चाहिये। वर्षा ऋतु में आराम से पच जाने वाला खाना ही लेना चाहिए ।  ऋतुचर्या - Ayurveda, Health tips, Yoga, Home इस मानसून में रहें स्वस्थ आयुर्वेद के दिशानिर्देशों के अनुसार, यहाँ पर मानसून के मौसम में बिल्कुल अनूकुल और ठीक रहने के कुछ सुझाव दिए गए हैं। आहार टिप्स बरसात के मौसम के दौरान पत्तेदार सब्जियाँ खाने से परहेज करें, इस मौसम में ये सब्जियाँ कीड़ो के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं। इस मौसम में मसालेदार और तेलयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अपच, पेट फूलने और नमक प्रतिधारण का कारण बनता है। बरसात के मौसम में खट्टे या अम्लीय खाद्य पदार्थ भी स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं हैं। बरसात के मौसम में भाप से बना हुआ या अच्छी तरह से पका हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। इस मौसम में गाय का दूध आसानी से पचने वाला और हल्का होता है तथा तुरन्त ऊर्जा प्रदान करता है। इसके सेवन से सुस्ती नहीं आती है। इस मौसम में कोशिश करके गेहूँ और मैदा की जगह जौ और चने के आटे का इस्तेमाल करें। आयुर्वेद के अनुसार, दोपहर के भोजन में मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा और कसैला स्वाद शामिल होना चाहिए, यह सभी छह बुनियादी स्वाद हैं। दोपहर के भोजन की शुरूआत किसी मीठे फल या मिठाई से करें इसके बाद क्रमशः नमकीन, खट्टा और तीखा खायें। भोजन को किसी कड़वी चीज पर समाप्त करें और अंततः मुँह को साफ करने वाले पदार्थों के रूप में सौंफ के बीज या कैरम (डली, सौंफ इलायची और मिश्री आदि का मिश्रण) का सेवन करें। आयुर्वेद का सुझाव है कि रात का भोजन बहुत हल्का करना चाहिए, इसमें चावल, दूध, ज्वार / जोला (मक्का) का उपयोग सबसे अच्छा रहता है क्योंकि वे आसानी से पचने योग्य होते हैं। रात का भोजन सोने से कम से कम 2 घंटे पहले करना चाहिए। ऋतुचर्या - ऋतु अनुसार आहार- विहार - health and yoga इस मौसम में क्या करें और क्या न करें दैनिक आहार में सूखे मेवे को कम मात्रा में शामिल करना चाहिए। हल्के स्नैक्स तो ठीक हैं लेकिन तले हुए खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस मौसम में लाल मसूर की दाल (तूर दाल) का उपयोग करने से एसिडिटी हो जाती है और पेट फूल जाता है, इसलिए इसका सेवन कम करना चाहिए। इस मौसम में मूंग की दाल आसानी से पचने योग्य है। इस मौसम में उरद की दाल का उपयोग करने से भी पेट फूल जाता है। मानसून के दौरान जिमीकंद, मीठे आलू, बैंगन और कद्दू स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं। इस मौसम के दौरान संसाधित खाद्य पदार्थ (पैकेट या डिब्बा बंद भोजन) को सबसे अधिक नजरअदांज करना चाहिए। बेहतर है कि इस मौसम में मांस, सूअर का मांस, बीफ और मछली सहित गैर-शाकाहारी वस्तुओं का सेवन कम करें। दही का चीनी या नमक के साथ सेवन करना अच्छा है। इस मौसम में गाय के दूध से बना शुद्ध मक्खन (घी) स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि इससे पाचन करने में मदद मिलती है, प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ती है, तनाव से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है और याददाश्त में सुधार होता है। इस मौसम में योग और जॉगिंग जैसे हल्के व्यायाम शरीर को फिट रखने में बहुत महत्वपूर्ण हैं। मानसून के मौसम के दौरान पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा से शरीर की मालिश एक श्रृंखला के माध्यम से करवानी चाहिए जो शरीर के अपशिष्ट पदार्थ को विसर्जित (बाहर निकालने) करने में मदद करता है और मानसिक रूप से शरीर को ताजा रखता है। भारत में छह प्रमुख वेक्टर जनित रोगों का भारी प्रकोप है। इनमें मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, फाइलेरिएसिस, जापानी एन्सेफलाइटिस और विसरल लिशमानियासिस शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बढ़ सकते हैं। वर्षा ऋतु में तापमान की अधिकता के साथ ही जल की प्रचुरता से बैक्टीरिया, वायरस, मच्छर, मक्खी आदि का प्रकोप भी बढ़ जाता है। अध्ययन बताते हैं कि वर्षाऋतु में डेंगू-संक्रमित मच्छरों का प्रतिशत बढ़ जाने से आगे चलकर उनकी संक्रामकता बढ़ जाती है। साथ ही सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, अपच, डायरिया आदि का प्रकोप भी बढ़ जाता है। ऐसी दशा में बीमार पड़ने पर प्रायः आयुर्वेद की वे औषधियां जो एन्टी-वायरल, एन्टी-बैक्टेरियल व एन्टी-इन्फेक्टिव प्रभाव वाली होती हैं उनसे शीघ्रता से लाभ मिलता है। विविध प्रकार के वायरल संक्रमण के कारण रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या में भारी कमी जानलेवा हो सकती है। अतः तुलसी, गुडूची, कालमेघ जैसे औषधीय पौधों से प्राप्त मानकीकृत औषधियाँ लाभकारी हो सकती हैं। इन प्रजातियों को घरों के आसपास उगाकर रखना और आयुर्वेदाचार्यों की सलाह से चिकित्सकीय उपयोग जीवन-रक्षा में मददगार हो सकता है।