ये दुनिया शाश्वत नियमों से चलती है। ये नियम बहुत आश्चर्यजनक हैं।


स्टोरी हाइलाइट्स

ये दुनिया शाश्वत नियमों से चलती है। ये नियम बहुत आश्चर्यजनक हैं।हम देखते हैं कि इस संसार के सभी ग्रह नक्षत्र तारे किसी अज्ञात स्थान स्थान से पैदा होते हैं और उसी में समा जाते हैं।

ये दुनिया शाश्वत नियमों से चलती है। ये नियम बहुत आश्चर्यजनक हैं।हम देखते हैं कि इस संसार के सभी ग्रह नक्षत्र तारे किसी अज्ञात स्थान स्थान से पैदा होते हैं और उसी में समा जाते हैं। उसी तरह सर्वत्र हो रहा है।पेड़-पौधे मिट्टी से ही सार ग्रहण करते हैं और सड़गल कर फिर से मिट्टी में ही मिल जाते हैं। प्रत्येक साकार पदार्थ अपने चारों ओर वर्तमान परमाणुओं से पैदा होकर फिर से उन परमाणुओं में ही मिल जाता है।स्वामी विवेकानंद कहते हैं ऐसा कभी हो नहीं सकता कि एक ही नियम अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग रूप से कार्य करे। नियम सर्वत्र ही समान है। इससे अधिक निश्चित बात और कुछ नहीं हो सकता। यदि यही प्रकृति का नियम हो तो वह अंतर्जगत पर क्यों लागू होगा? मन भी अपने उत्पत्ति-स्थान में जाकर लय को प्राप्त करेगा।हम चाहें या ना चाहें। हमें अपनी उस आदिकारण में लौट ही जाना पड़ेगा जिसे ईश्वर या निरपेक्षता कहते हैं। हम ईश्वर से आये हैं और पुनः ईश्वर में ही लौट जाएँगे।ईश्वर को फिर किसी भी नाम से क्यों ना पुकारो, गॉड (God) कहो, निरपेक्ष सत्ता कहो अथवा प्रकृति कहो,सब एक ही बात है। कहा भी गया है कि— *"यतो वा इमानि भूतानी जायन्ते। येन जातानि जीवन्ति,यत प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।। "* जिनसे सब प्राणी पैदा हुए हैं जिनमें उत्पन्न हुए समस्त प्राणी स्थित है और जिनमें सब फिर से लौट आयेंगें, यह एक निश्चित तथ्य है। * प्रकृति सर्वत्र एक ही नियम से कार्य करती है। एक लोक में जिस नियम से कार्य करती है दूसरे लाखों लोकों में भी वह उसी नियम से कार्य करती है।ग्रहों में जो व्यापार देखने में आता है इस पृथ्वी,मनुष्य और सभी में भी वही व्यापार चल रहा है।एक बड़ी लहर लाखों छोटी-छोटी लहरों से बनी होती है। उसी प्रकार सारे जगत का जीवन लाखों छोटे-छोटे जीवनों की एक समष्टि मात्र है और इन सब लाखों छोटे-छोटे जीवो की मृत्यु ही समस्त जगत की मृत्यु है।