योग का उद्देश्य क्या है ?


स्टोरी हाइलाइट्स

योग का उद्देश्य योग का उद्धेश्य हमारे जीवन का समग्र विकास करना है। या इसे ऐसे कह सकते है कि जीवन  का  सर्वांगी विकास  करना।  सर्वांगी विकास  से  तात्पर्य  यहाॅ  शारीरिक,  मानसिक, नैतिक,  आध्यात्मिक  व  सामाजिक  विकास  से  है।  योग  जीवन  जीने  की  कला  है।  योग  एक ऐसा  साधना  विज्ञान  है,  जिसके  द्वारा  जन्म-जन्मो  के  संस्कार  क्षीण  हो  जाते  हैं।  शारीरिक, एवं मानसिक निरोगता, स्वस्थता, व कुविचारों, कुसंस्कारांे से मुक्ति मिलती है। सुसंस्कारिता, सुविचार के द्वारा अच्छे व्यक्तित्व का निर्मा ा होता है। जीवन उच्च व दिव्य बनता जाता हैं। आत्मदर्शन व आत्मसाक्षात्कार के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। कुछ ग्रन्थों में योग के उद्धेश्य को इस तरह परिभाषित किया गया है- ‘‘द्विजसेवित शाखस्य श्रुति कस्पतरोः फलम्। शमन भव तापस्य योगं भजत सत्तमाः।।’’ -गोरक्ष संहिता अर्थात्  वेद  रूपी  कल्प  वृक्ष  के  फल  योग  शास्त्र  है।  इस  योगशास्त्र  के  सेवन  से संसार के तीन प्रकार के ताप का शमन होता हैं। शिव संहिता मेें इस प्रकार वर्णित है - ‘‘यस्मिन् ज्ञाते सर्वमिदं ज्ञातं भवति   निश्चितम्। तस्मिन् परिश्रमः कार्यः किमन्यच्छास्य भावितम्।।’’ - शिव संहिता जिसके  जानने  से  यह  संसार  जाना  जाता  है,  ऐसे  योग  शास्त्र  को  जानने  के  लिए परिश्रम करना चाहिए। अन्य शास्त्रो को जानने का प्रयोजन फिर कुछ नहीं रह जाता है। योग अध्ययन का मुख्य उद्धेश्य ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करना है। ऐसे योगियो व ईश्वर  भक्तो  का  निर्माण करना  है।  जिनका  भावनात्मक  स्तर  दिव्य  मानवताओं  से,  दिव्य योजनाओं से, दिव्य आकाॅक्षाओं से उमंगित हो, वे सामान्य - साधारण  मनुष्यों की तुलना में कहि अधिक उत्कृष्ट व समर्थ होते है। ऐसे व्यक्तियों की कार्य क्षमता उच्च स्तर की होकर जीवन दिव्य, उच्च होता है। योग  विद्या  के  अलग  -  अलग  विषयो  पर  देंखे  -  यदि  हम  अष्टाॅग  योग  के अन्तर्गत  देखे  तो  हम  पाते  है  कि  महर्षि  पतंजलि  ने  अष्टाॅग  योग  के  द्वारा  शरीर  शुद्धि  के साथ  -  साथ  चरित्र  की  शुद्धि  का  उपाय  बताया  गया  है।  अष्टांग  योग  का  उद्धेश्य  चरित्र की  शुद्धि  कर  स्थूल  शरीर  के  विकरण  को  दूर  करना  है।  यम,  नियम  हमारे  व्यवहार  को चरित्र  को  शुद्धि  सात्विक  व  निर्मल  बनाते  है।  व्यवहार  शुद्ध  हुए  बिना  किसी  भी  साधना  में प्रवृत्त नहीं हो सकते हैं, और मनुष्य का सर्वांगी विकास नहीं हो सकता है। तब शारीरिक स्वास्थ्य  की  प्राप्ति  की  जा सकती  है।  चारित्रिक  स्वास्थ्य  यम  -  नियम  का  मूल  उद्धेश्य  है, और  शारीरिक  स्वास्थ्य  आसन - प्राणायाम  का  मूल  उद्धेश्य  है।  प्रत्याहार  का  मूल  उद्धेश्य जीवन  में  संयम  हैं।  संयमित  जीवन  शैली  प्रत्याहार  द्वारा  ही  किया  जा  सकता  है।   ध्यान  समाधि  का  उद्धेश्य  मानसिक  स्वास्थ्य  की  प्राप्ति  है।  ध्यान  द्वारा  चित्त  का  विखराव, भटकाव रोक कर एक स्थान विशेष उसको लगााना है, और अपने - अपने नियम लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना ध्यान का उद्धेश्य है, और समाधि ध्यान की उकृष्ट अवस्था है, जिसके द्वारा  आत्म  साक्षात्कार  प्राप्त  किया  जा  सकता  है।  समाधि  की  उच्चतम  अवस्था  में  परमात्मा का  साक्षात्कार  किया  जा  सकता  है।  समाधि  का  उद्धेश्य  मोक्ष  की  प्राप्ति  है,  जो  कि  मनुष्य मात्र का परम लक्ष्य है। महर्षि  पतंजलि कृत  योग  सूत्र  में  वर्णित  क्रिया योग  पर  दृष्टि  करे, तो  क्रियायोग  का उद्धेश्य  कर्मयोग,  भक्तियोग,  तथा  ज्ञानयोग  की  प्राप्ति  हैं।  तप  को  अपनाकर  कर्म  करने  की प्रवृति होती है। मनुष्य कर्मयोगी बनता है, और स्वाध्याय का उद्धेश्य है, ज्ञान की प्राप्ति और ईश्वर  प्रा िाधान का उद्धेश्य  है, भक्ति  की प्राप्ति। इस प्रकार  कर्म, ज्ञान, भक्ति का समन्वय मनुष्य के लिए आवश्यक  है। जो कि  मनुष्य जीवन  को उच्च व दिव्य  बनाता  है। क्रियायोग का  उद्धेश्य  है,  क्लेशों  जो  कि  मनुष्य  जीवन  में  कलुषता  लाते  है,  दुख  देते  है,  उन  क्लेशों को क्षीर्  कर  सर्वांगी विकास  करना। मनुष्य जीवन  की आकुलता, कलुषता, पीड़ा, चिन्ता, तनाव  आदि  को  खत्मकर  सम्र्पू ा  स्वास्थ्य  की  प्राप्ति  योग  का  मुख्य  उद्धेश्य  है।  जिससे  कि सम्पूर्ण  मनुष्य जाति  दिव्य  शान्ति  एवं समरसत्ता को प्राप्त  कर  सकें। वही  क्रियायेाग क्लेशो को कमजोर कर समाधि की प्राप्ति में सहायक है। जब क्लेशो का पूर्ण रूप से क्षय हो जाता है,  तब समाधि की उच्चतम स्थिति  असम्प्रज्ञात  समाधि प्राप्त  होती  है, और  चित्त  अपने  मूलकार  प्रकृति  में  लीन  हो  जाता  है।  तब  आत्मा  अपने  स्वरूप  में  प्रतिष्ठित  होता  है,  और पुरुष के लिए वही स्थिति  कैवल्य की है। इस प्रकार क्रियायोग का उद्धेश्य क्लेशो को कम करके कैवल्य की प्राप्ति है। आधुनिक  युग  में  यदि  देखा  जाए  तो  योग  का  उद्धेश्य  शारीरिक  स्वास्थ्य  या मानसिक  स्वास्थ्य  प्राप्त  करना,  धन  अर्जित  करना,  शारीरिक  सौन्दर्य  की  प्राप्ति,  यश  प्राप्ति तक  ही  सीमित  रह  गया  है। तीन पुरुषार्थ की पूर्ति करते हुए अन्ततोगत्वा मोक्ष की प्राप्ति ही  योग का उद्धेश्य है।