जाने एक महर्षि ने जब किया अप्सरा से विवाह? और उनके पुत्र के नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा


स्टोरी हाइलाइट्स

महर्षि विश्वामित्र के साथ मेनका नाम की अप्सरा भी जुड़ी हुई है|  विश्वामित्र को इतिहास के श्रेष्ठ विषयों में से एक होने का दर्जा प्राप्त है| एक ऐसे ऋषि.....

  महर्षि विश्वामित्र के साथ मेनका नाम की अप्सरा भी जुड़ी हुई है|  विश्वामित्र को इतिहास के श्रेष्ठ विषयों में से एक होने का दर्जा प्राप्त है| एक ऐसे ऋषि जिन की तपस्या भंग करना किसी के बस की बात नहीं रही, लेकिन एक अप्सरा ने उनकी तपस्या भंग कर दे| महर्षि विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं थे तत्वज्ञान से इन्होंने ब्राह्मणत्व हासिल किया था| महर्षि विश्वामित्र चारों वेदों के ज्ञाता थे और इन्हें गायत्री मंत्र की सिद्धि भी प्राप्त थी|  आखिर एक राजा को महर्षि बनने की जरूरत क्या पड़ी? राजा कौशिक से महर्षि विश्वामित्र तक का सफ़र महर्षि वशिष्ठ से युद्ध की कथा शक्तिशाली राजा कौशिक  कुषा  नामक राजा के पात्र थे |राजा कुषा की चार संतानों में से एक थे कुशनाबर जिन्होंने पुत्रकामेश्ठी यज्ञ द्वारा कधि नामक पुत्र को प्राप्त किया इन्ही राजा कधि की संतान थी कौशिक | कौशिक एक महान राजा थे इनके संरक्षण में प्रजा खुशहाल थी | एक बार राजा कौशिक महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे|  यहां वशिष्ठ ने राजा कौशिक और उनकी विशाल सेना को पेट भर भोजन कराया| राजा कौशिक हैरान थे कि कैसे एक ब्राह्मण इतनी बड़ी सेना का  आदर सत्कार और स्वादिष्ट भोजन का इंतजाम कर सकता है| राजा कौशिक ने वशिष्ठ से इसका राज पूछा? ऋषि वशिष्ठ ने बताया कि उनके पास एक नंदिनी गाय है जो कामधेनु की बछिया है और उन्हें इंद्र ने भेंट की है| यही नंदिनी एक साथ कई जीवों का पोषण कर सकती है| राजा कौशिक ने वशिष्ठ से नंदनी देने का निवेदन किया|  लेकिन वशिष्ठ ने नंदनी को प्राण प्रिय बताकर राजा कौशिक को उसे देने से मना कर दिया|  राजा कौशिक को गुस्सा आ गया और उन्होंने सेना को गुरु वशिष्ट से नंदनी को छीनने का आदेश दिया| राजा कौशिक की पूरी सेना नंदनी को हिला भी नहीं सकी उल्टा नंदनी पूरी सेना  का नाश कर देती है| गुरु वशिष्ठ क्रोधित होकर राजा के एक पुत्र को छोड़कर सभी को अपने शाप से भस्म कर देते हैं| राजा कौशिक अपनी सेना  और पुत्रों के विनाश से दुखी होकर| बचे हुए 1 पुत्र को राजपाट सौंपकर तपस्या के लिए हिमालय चले जाते हैं|  राजा कौशिक अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं| भगवान शिव प्रकट होकर राजा को वरदान मांगने का कहते हैं | तब राजा कौशिक शिव जी से सभी दिव्यास्त्र का ज्ञान मांगते हैं | शिव जी उन्हें सभी शस्त्रों से सुशोभित करते हैं | राजा कौशिक अपने पुत्रों की मृत्यु का बदला लेने के लिये वशिष्ठ पर आक्रमण करते हैं और दोनों तरफ से घमासान युद्ध शुरू हो जाता हैं | राजा के छोड़े हर एक शस्त्र को वशिष्ठ निष्फल कर देते हैं | अंतः वशिष्ठ क्रोधित होकर कौशिक पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं जिससे चारो तरफ तीव्र ज्वाला उठने लगती हैं तब सभी देवता वशिष्ठ जी से अनुरोध करते हैं कि वे अपना ब्रह्मास्त्र वापस ग्रहण कर ले | वे कौशिक से जीत चुके हैं इसलिए वे पृथ्वी की इस ब्रह्मास्त्र से रक्षा करें | सभी के अनुरोध और रक्षा के लिए वशिष्ठ शांत हो जाते हैं ब्रह्मास्त्र वापस ले लेते हैं |  वशिष्ठ से मिली हार के कारण कौशिक राजा के मन को बहुत गहरा आघात पहुँचता हैं वे समझ जाते हैं कि एक क्षत्रिय की बाहरी ताकत किसी ब्राह्मण की योग की ताकत के आगे कुछ नहीं इसलिये वे यह फैसला करते हैं कि वे अपनी तपस्या से ब्राह्मणत्व हासिल करेंगे और वशिष्ठ से श्रेष्ठ बनेंगे| कौशिक दक्षिण दिशा में जाकर अपनी तपस्या शुरू करते हैं जिसमे वे अन्न का त्याग कर फल फुल पर जीवन व्यापन करने लगते हैं | उनकी कठिन तपस्या से उन्हें राजश्री का पद मिलता हैं | अभी भी कौशिक दुखी थे क्यूंकि वे संतुष्ट नहीं थे | इस सबके बाद विश्वामित्र ने फिर से अपनी ब्रह्मर्षि बनने की इच्छा को पूरा करना चाहा और फिर से तपस्या में लग गए | कठिन से कठिन ताप किये | श्वास रोक कर तपस्या की | उनके शरीर का तेज सूर्य से भी ज्यादा प्रज्ज्वलित होने लगा और उनके क्रोध पर भी उन्हें विजय प्राप्त हुई तब जाकर ब्रह्माजी ने उन्हें ब्रम्हऋषि  का पद दिया और तब विश्वामित्र ने उनसे ॐ का ज्ञान भी प्राप्त किया और गायत्री मन्त्र को जाना | उनके इस कठिन त़प के बाद वशिष्ठ ने भी उन्हें आलिंगन किया और ब्राह्मण के रूप में स्वीकार किया | और तब इन्हे कौशिक से महर्षि विश्वामित्र का नाम प्राप्त हुआ | इंद्र ने मेनका को तप भंग करने भेजा : जब विश्वामित्र साधना में लीन थे | तब इंद्र को लगा कि वे आशीर्वाद में इंद्र लोक मांगेंगे इसलिये उन्होंने स्वर्ग की अप्सरा को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेजा चूँकि मेनका बहुत सुंदर थी विश्वामित्र जैसा योगी भी उसके सामने हार गया और उसके प्रेम में लीन हो गया | मेनका को भी विश्वामित्र से प्रेम हो गया | दोनों वर्षों तक संग रहे तब उनकी संतान शकुंतला ने जन्म लिया जब विश्वामित्र को ज्ञात हुआ कि मेनका स्वर्ग की अप्सरा हैं और इंद्र द्वारा भेजी गई हैं तब विश्वामित्र ने मेनका को शाप दिया | इन दोनों की पुत्री पृथ्वी पर ही पली बड़ी और बाद में राजा दुष्यंत से उनका विवाह हुआ और दोनों की सन्तान भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा | विश्वामित्र और राम : विश्वामित्र ने शस्त्रों का त्याग कर दिया था इसलिए वे खुद राक्षसी ताड़का से युद्ध नहीं कर सकते थे इसलिये उन्होंने अयोध्या से भगवान राम को जनकपुरी में लाकर तड़का का वध करवाया |