योग के माध्यम से करें, अपने मन पर नियन्त्रण.. 


स्टोरी हाइलाइट्स

सत्य की खोज हेतु " विद्वानों, महापुरूषों और पन्थों " ने अपने-अपने मार्ग बताए हैं। ये मार्ग अदर्शों विधि-निषेधों और आचार- व्यहार के नियमों को निर्दिष्ट

योग के माध्यम से करें, अपने मन पर नियन्त्रण.. सत्य की खोज हेतु " विद्वानों, महापुरूषों और पन्थों " ने अपने-अपने मार्ग बताए हैं। ये मार्ग अदर्शों विधि-निषेधों और आचार- व्यहार के नियमों को निर्दिष्ट करतें हैं। यह भी कहा गया है कि " महाजनो येन गतः सः पन्थ " अर्थात् महापुरूषों के दिखाए गये मार्ग का अनुसरण- करें यही मार्ग है। बुद्ध ने " अप्प दीपो भव " के माहम से अपना प्रकाश स्वंय बनकर मार्ग ढूढनें पर बल दिया। परन्तु मार्ग की जानकारी भर हो जाने से ही उस पर चलना नहीं हो जाता। मार्ग स्पष्ट हो लेकिन चलने के लिये शक्ति चाहिये, शारीरिक शक्ति और मानसिक शक्ति। चलना तो इस शरीर रूपी रथ के माध्यम से ही है। शरीर रूपी रथ मजबूत और कार्यशील होना चाहिए । इसमें इतनी शक्ति होना चाहिए कि यह बिना रूके, बिना थके लगातार चल सके और लम्बी दूरी तय कर सके। इस शरीर रूपी रथ में जीवात्मा बैठा है। इन्द्रियाँ घोड़े की तरह जुती हैं और मन सारथी है। यह सारथी बड़ा ही उद्दण्ड और प्रेय मार्गों पर भागने वाला है। जीवात्मा को या स्वयं मन को भी सही राह की जानकारी होने पर भी यह उस पर जाने की प्रवृत्ति नहीं रखता। इस सारथी पर नियन्त्रण बहुत कठिन काम है। आप संकल्प करके इसे एक राह पर जाने से रोकते हो तो यह दूसरी ही पगडण्डी पकड़ लेता है और वहीं पहुँच जाता है जहाँ जाने से उसे रोका था। इस सारथी की प्रवृत्ति रथ को ढ़लान पर उतारने की होती है क्योंकि यह पानी की तरह नीचे की ओर गति करने में रूचि और प्रवृत्ति रखता है। इसे इसी की मनमर्जी से रथ दौड़ाने दिया जाये तो यह रथ को ढ़लान पर ले जाकर कई बार गड्ढ़े में भी गिरा देता है। इसलिये इसे आवश्यक निर्दिष्ट मार्ग पर लगाये रखना आवश्यक होता है। इसके लिये इसे अपने वश में रखना जरूरी है। लेकिन इसे वश में करना आसान नहीं है। भारतीय मनुष्यों ने अपने दीर्घकालीन अनुभव से यह जाना है कि इसका संबंध श्वास से है। इसलिये श्वास पर नियन्त्रण करके बहुत हद तक इस पर नियन्त्रण हो सकता है। दूसरा तरीका है ध्यान का जिसकी बहुत सी विधियाँ हैं जिन्हें प्रयोग में लाना चाहिये। इसलिये प्रतिदिन प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करना मन पर नियन्त्रण स्थापित करने का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है। भगवान कृष्ण गीता में कहते है कि हे पार्थ ! इस मन पर नियन्त्रण बहुत कठिन काम है किन्तु अभ्यास और वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है। अतः प्राणायाम, योग, ध्यान, वैराग्य एवं अन्य अनेकानेक विधियों से मन को साधने का निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिये। एक बार असफलता मिले तो दूसरी बार प्रयास करें,दूसरी बार असफलता मिले तो तीसरी बार प्रयास करें असफलता से निराश न हों एक बार असफल हो जाने पर पुनः उठकर खड़े हो जाओ और पुनः प्रयास करो, तुम्हारा महान गौरव कभी भी न गिरने में नहीं है बल्कि जब भी गिरो तुरन्त उठ पड़्ने में है। बारम्बार प्रयासों से इसे अपने नियन्त्रण में लिया जा सकता है। यही अभ्यास है। वैराग्य है मन को वृत्तियों के विपरीत खींचना । दिन में कम से कम एक काम जरुर ऐसा करना चाहिए जिसे करने में मन की रूचि न हो, दूसरा ऐसा भी जरूर करें कि किसी काम को मन बहुत करना चाहे लेकिन आप उस काम से बिल्कुल अलग हट जाएं, उसे बिल्कुल न करें । ये दोनों ही काम मन के खिलाफ खड़े होने वाले काम हैं। इन्हीं से वैराग्य सधता है । वातावरण में रहने से भी अच्छे विचार,अच्छी आदतें, अच्छे संस्कार बनते हैं जो सहज ही मन को भटकने से बचाते हैं। उदात्त वातावरण (अच्छी किताबें, अच्छा संगीत, अच्छी संगति, अच्छे विचार, अच्छे भाव तथा ईश्वर प्रणिधान) में रहना भी मन के भटकाव से बचाव का उत्तम उपाय है। खाली न रहें, जो काम करें पूरा चित्त उसमें लगाए रखें, बुरें विचारों को मन में प्रवेश करते ही अपना मन इस कार्य में लगने का अभ्यास करें। उदात्त वतावरण के अंतर्गत व्यस्त रहते हुए एक ही काम पर पूर्ण एकाग्र हो जाना मन पर नियंत्रण का तीसरा उपाय हैं । श्वास पर नियंत्रण, ध्यान, उदात्त वातावरण में व्यस्त रहते हुए एक ही काम पर पूर्ण एकाग्र हो जाना ,वैराग्य, अभ्यास माना जाता है। मन की शक्ति और वेग इतना अधिक है कि यह तुरन्त राह पर दौड़ कर बहुत दूर ले जाता है। इस पर यदि नियन्त्रण नहीं है तो न तो वाणी पर नियन्त्रण हो सकेगा और न काम पर। कार्यों के सम्पादन में भी एकाग्रता नहीं रहेगी और कुछ भी ठीक से नहीं होगा। मन पर अनियंत्रण का ही परिणाम होता है कि विद्यार्थी बैठा तो क्लास में होता है लेकिन उसका मन कहीं फिल्मों, खेलों या दोस्तों की यादों में कुलाँचे भर रहा होता है। कुल मिलाकर मन पर नियन्त्रण न हो तो कितना ही अच्छा टाइम टेबल बना लें, कितने ही उच्च आदर्श और नियम बना लें। कितनी ही शपथ ले लें, कितने ही संकल्प कर लें उन पर चलना और उनका पालन करना अधिक दिन नहीं चल पाता। किन्तु यदि मन पर नियन्त्रण स्थापित हो जाता है तो इसकी यही तीव्रगामिता और शक्तिसंपन्नता वरदान बन जाती है। मन पर नियन्त्रण हो जाने पर इसे इच्छित तथा श्रेय मार्ग पर चलाया जा सकता है और जहाँ यह उचित मार्ग पर दौड़ना शुरु हुआ कि अल्प समय में ही अविश्वसनीय से कार्य कर डालता है। तब लोगों को लगता है कि- अरे यह तो अतिमानवीय कार्य है, इतने कम समय में इतना अधिक कार्य कैसे कर लिया, अद्भुत इत्यादि। परन्तु मन को वश में कर लेने पर सब कुछ संभव है। समय जरूर सीमित होता है पर मनुष्य (मन) की क्षमताएँ अनन्त हैं। समय उतना ही पर काम कई गुना होता है । मन पर नियंत्रण रखने वाले सीमित समय में ही कई गुना काम निबटा देते है क्योंकि तब वे डंद नहीं बल्कि ैनचमतउंद बन जाते हैं । मन पर नियन्त्रण कर लेने से सब नियन्त्रित हो जाता है इसीलिये तो कहते हैं। मन के साधे सब सधे। वैराग्य विषयों से विरक्ति का नाम है। मन को इसकी वृत्तियों से खींचकर सही राह पर लगाने का अभ्यास इसका अंग है। इसका मतलब यह नहीं है कि इन वृत्तियों से दूर हो जाने पर व्यक्ति साधु हो जायेगा और संसार से उसका कोई नाता नहीं रहेगा। नहीं, व्यक्ति संसार में ही रहेगा बस उसे मन पर नियन्त्रण हो जायेगा और वह सांसारिक क्रिया कलाप भी बहुत सजग रहकर दक्षता के साथ करेगा फलतः परिणाम भी अच्छे मिलेंगे। मन की वृत्तियों में बह जाने से होने वाले दुष्परिणाम नहीं होंगे। मन की वृत्तियों का सदुपयोग किया जा सकेगा। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ईष्या और द्वेष जैसी प्रवृत्तियों का परिष्कार और रूपांतरण मन पर नियन्त्रण से संभव है। जब मन पर नियन्त्रण होगा तो आवश्यक्तानुसार उक्त वृत्तियों का परिष्कृत प्रयोग अच्छे परिणाम लायेगा। गृहस्थ जीवन में काम का एकाग्र और निष्णात प्रयोग गृहस्थ को सुखी और संतुष्ट बनाता है। वाणी का सही प्रयोग व्यक्ति को बड़ी-बड़ी ऊँचाइयों तक पहुँचा देता है। कर्त्तव्यों का सजगता और दक्षतापूर्वक निश्पादन सफलता के शिखरों पर बैठा देता है। समय का प्रबंधन और छुपकर कोई कार्य न करना तो फिर सहज ही सधने लगता है। रात में सोने और सुबह उठने में भी नियमितता आ जाती है। विपत्तियों का सामना होश पूर्वक साहस के साथ किया जा सकता है। लक्ष्य के प्रति एकाग्रता आ जाती है जिससे स्पष्टता और प्रतिबद्धता उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति शुद्ध, बुद्ध और तेजोमय इंसान के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है। वह रहता तो संसार मे ही है किन्तु कमल के समान सांसारिकता से निस्पृह होता है। चिन्ता, तनाव और नकारात्मकता विलीन हो जाती है और सकारात्मकता उभर आती है। इतना होता है तो प्रभु विश्वास, आत्म सम्मान और आत्म विश्वास कायम होने लगता है और लोगों की व्यर्थ की टीका टिप्पणी, आलोचना,छींटाकशी, नाराजगी की परवाह नहीं रहती। आत्म-संयम और परोपकार सबसे बड़े धर्म हैं। इन दोनों में सभी धर्मों का सार छुपा हुआ है। यदि व्यक्ति ये दो कार्य करता है तो वह ईश्वर की सबसे बड़ी भक्ति कर रहा है और यह सब संभव हो पाता है मन पर नियन्त्रण से। जिसका व्यावहारिक मार्ग (क्रियात्मक मार्ग) प्राणायाम, ध्यान और उदात्त वातावरण (अच्छी किताबें, अच्छा संगीत, अच्छी संगति, अच्छे विचार, अच्छे भाव तथा ईश्वर प्रणिधान) से होकर जाता है। इसलिये दिन में प्राणायाम, ध्यान, स्वाध्याय, सत्संग, ईश्वर भक्ति, संगीत श्रवण आदि के लिये अवश्य ही समय निकालना चाहिये। अष्टांग योग को जीवन का अंग बना लेने पर मन का नियंत्रण अपने आप सधने लगता है। तब भौतिक उपलब्धियाँ तो बहुत छोटी बात रह जाती है और मोक्ष मार्ग खुलने लगता है। सन्मार्ग पर चलने की षारीरिक और मानसिक शक्ति योग से प्राप्त हो जाती है । यम- (गया सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य) नियम- (शौच, संतोष, स्वाध्याय, तप, ईश्वर प्रणिधान) आसन प्राणायाम प्रत्याहार ध्यान धारणा समाधि यह कर्मकाण्ड बन जाये ऐसा आग्रह नहीं है, होशपूर्वक विवेकानुसार इनका जीवन में नियोजन हो । निम्न योग अभ्यास प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में करना चाहिए। जिनके माध्यम से मन पर नियन्त्रण हो सकता है। बाह्य भस्त्रिका कपालभाती अनुलोम ध्यान भ्रामरी उज्जायी ऊँ का नाद प्रणायाम विलोम मार्ग पर चलने की शारीरिक और मानसिक शक्ति योग से प्राप्त हो जाती है । यम- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, नियम- शौच, संतोष, स्वाध्याय, तप, ईश्वर प्रणिधान, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि, जीवन में उत्पन्न होने वाले अधिकांश उपद्रव वाणी और काम पर नियंत्रण न होने से होते हैं वाक् संयम और काम संयम हेतु निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है। वाक् संयम अश्वास से सधता है। अनावश्यक न बोलें। किसी की निंदा न करें। किसी पर कटाक्ष न करें। किसी का अपमान न करें । किसी का उपहास न उड़ायें। आवाज प्रभावोत्पादक रखें। धीरे-धीरे जमा जमा कर बोलें। सुसंस्कृत भाषा का प्रयोग करें। किसी का राज फाश न करें। शिष्टता, सौम्यता, शालीनता और दृढ़ता बनाये रखें, आहार-विहार और आचार-विचार के विरुद्ध बात होने पर ना बोलने में संकोच न करें। तीसरे व्यक्ति को कभी भी चर्चा का विषय न बनायें। हमेशा नवीन तथ्यों और साकारात्मक विचारों को वाणी से निःसृत करें। किसी भी व्यक्ति की कभी भी किसी से तुलना न करें, न तो साकारात्मक अर्थ में और न ही नाकारात्मक अर्थ में। लोगों के बोलने से गुस्सा मत होइये, धैर्यपूर्वक सुनिये, कुछ लोग इसलिये गुस्सा करते हैं कि आप क्रोध और उत्तेजना में आकर कुछ गलत बोल या कर जायें, पर आपको किसी और से संचालित नहीं होना है, प्रतिक्रिया सोच-समझकर संतुलित ढ़ंग से देना चाहिये बड़े पद पर कार्य करने वाले को कान का कच्चा नहीं होना चाहिये, उसे स्वयं विभिन्न सूत्रों और स्रोतों से जानकारी इकट्ठी करनी चाहिये, तभी बोलना या करना चाहिये । केवल एक ही पक्ष को न जानकर दूसरे पक्ष का मन्तव्य भी समझकर निर्णय करना चाहिये। मन को योग के माध्यम से शान्त रखा जा सकता है। जीवन में शांति और संतुलन चाहने वाले व्यक्ति को संयम का पालन करना चाहिये। ऐसा करके मनुष्य किसी और का भला नही करता बल्कि अपना ही भला करता है और व्यर्थ के झमेलों और प्रपंचों में फंसने से स्वयं को बचा लेता है । प्रत्येक व्यक्ति का एक प्रेरक श्क्ति होता है। काम वासना तो व्यक्ति को, सभी व्यक्तियों को नीचे की ओर खींचती है । यह तो एक बहुत बड़ा प्रेरक श्क्ति होता है जो व्यक्तियों को कामुकता भरे नन्दनीय कृत्यों की ओर ले जाता है। संतान प्राप्ति और वैवाहिक जीवन की स्थिरता के अतिरिक्त काम ऊर्जा का कोई उदात्त उपयोग कामेंद्रिय के माध्यम से नहीं हो सकता, किन्तु काम ऊर्जा का उर्ध्वगमन करके उससे ऐसे अद्भुत कार्य लिये जा सकते हैं कि संसार चमत्कृत रह जाए और दांतों तले अंगुली दबा ले । तो जैसा कि मैंने पूर्व में उल्लिखित किया गया है कि योग और मन पर नियन्त्रण योग और मन पर नियन्त्रण काम-वासना के अतिरिक्त भी हर एक के जीवन में कोई प्रेरक श्क्ति या उद्देश्य होता है, और यदि नहीं है तो होना चाहिये । इस उद्देश्य को मन में रखने से भी मन काम की ओर नहीं जायेगा, परन्तु उद्देश्य चूंकि श्रेय मार्ग है इसलिये मन उसकी ओर गति करने की सहज प्रवृत्ति नहीं रखता और प्रेय की ओर भागता है । मनुष्य के जीवन में काम के अतिरिक्त भी कोई उदात्त प्रेय विषय होता है । किसी को अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ने का चाव होता है तो किसी को संगीत का या बागवानी या पेंटिंग का । यह बहुत उत्पादक और प्रसन्नता दायक समय होता है । सुबह जल्दी उठकर आधे घंटे मैं अपना मनपसंद उदात्त कार्य करूंगा यह भावना जल्दी उठने और प्रेरणा देने में बहुत सहायक होती है। कठिन कार्य के लिये मन को प्रेरित करने के लिये भी इस प्रेरक श्क्ति का मन को आश्वासन दिया जा सकता है कि आधे घंटे अपने महत्वपूर्ण कार्य को करने के बाद मैं अपना मनपसंद उदात्त कार्य करूंगा। उदात्त इसलिये क्योंकि मनपसंद काम तो बहुत से होते हैं लेकिन सभी उदात्त नहीं होते। इन्टरनेट चलाना टी.वी. देखने लगना आदि ऐसे कार्य है जो फिसलन भरे हैं। आप यह कार्य करने जाते है कि मात्र 15 मिनिट या आधा घंटा टी.वी देखूंगा और पता चलता है कि एक से दो घंटे तक इस काम ने बर्बाद कर दिये और मन में खिन्नता और ग्लानि भर गया। उदात्त काम सदैव प्रसन्नता देगा, ग्लानि नहीं और वह काम करने के लिये आगे प्रेरित ही करेगा, ग्लानि की जगह आत्म संतोश देगा और ऊर्जा बचायेगा । मन पर नियंत्रण से वाणी और काम का संयम सहज ही साधने लगता है। मन पर नियन्त्रण उत्तम वातावरण में प्रणायाम, ध्यान अभ्यास और वैराग्य से आ सकता है। मन पर नियन्त्रण से प्रभु विश्वास, आत्म विश्वास, आत्म सम्मान व्यक्ति में अपने आप व्याप्त हो जाता है। मन पर नियन्त्रण से लक्ष्य की स्पश्टता, लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता, संकल्प लगन परिश्रम से कार्यों का सम्पादन, विवेक धैर्य साहस से विपत्तियों का सामना करने की ऊर्जा का विकास होता है। व्यक्ति को छुप कर कोई कार्य नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को मशीनवत अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। समय नष्ट नहीं करना चाहिए। वाणी संयम, काम संयम, उचित आहार-विहार पर ध्यान देना चाहिए। प्रकृति के विरुद्धकार्य नहीं करना चाहिए। तनाव, नकारात्मकता को छोड़ देना चाहिए। सकारात्मक सोचना व बोलना चाहिए। उक्त सभी कार्य मन पर नियन्त्रण से आते है। मन पर नियन्त्रण के लिए ध्यान आवश्यक है। मानव जीवन में यौगिक मार्ग का अनुगमन कर अपने जीवन में उतारना बडा ही कठिन है किन्तु असम्भव नही है। प्रतिदिन सुबह ब्रह्ममुहर्त में विस्तार का त्याग मशीन की भाॅति कर दे। शाम को जल्दी सोने का लक्ष्य तय करे। सोने से पूर्व ध्यान करे अपने सम्पूर्ण दिन की दैनिक गतिविधियों पर नजर डाले और मन को एकाग्र कर सकारात्मक कार्यो को ईश्वर रुपी शक्ति को समर्पण कर दे। नकारात्मक कार्यो को पुनः न करने का सकल्प एकाग्र मन से स्वीकार करे। सुबह साकारात्मक कार्यो को करने का मन में विचार कर शयन करे। सुबह योग, प्रणायाम, ध्यान के साथ साथ कम से कम दो किलोमीटर तेज गति से भ्रमण करे। मन व सांसो को नियत्रित करने का अभ्यास ध्यान, प्रणायाम व योग के माध्यम से निरन्तर करे।वाणी पर संयम रखे। वातावरण को अपने अनुकूल रखे। प्राणियो, पेड, पौधों से प्रेम करे। समय को नष्ट न करे। छुपकर कोई कार्य न करे। वैराग्य भाव मन में रखे क्योकि भाव के ही परिणाम आते है। उत्तम भाव,सकारात्मक विचारो व स्वच्छ मन से भोजन करे व जल ग्रहण करे। भोजन व जल में ईश्वरीय तत्व को स्वीकार करे, क्योकि कहा गया है कि जैसा खाओगे अन्न वैसा बैसा बनेगा मन। जैसा पियोगे पानी वैसी बोलोगे वाणी। अर्थात जिस भाव से भोजन ग्रहण किया जायेगा वैसा मन होगा। उत्तम ईश्वरीय भाव से पिया गया पानी शुद्ध मन, स्वच्छ आचरण व वाणी प्रदान करता है। आत्म विश्वास, ईश्वर विश्वास संकल्प विवेक के साथ लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए। लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता होना अनिवार्य है। संकल्प लगन परिश्रम से कार्यो को सम्पादित करना, धैर्य, साहस और विवेक के साथ विपत्तियों का सामना करना चाहिए। उचित आहार विहार करे। सकारात्मक मन के साथ योग ध्यान व प्रणायाम करे। नाकारात्मक भावों को त्यागकर साकारात्मक सुने व सकारात्मक सोचे व बोले ।