कोरोना काल: मत कर माया को अहंकार, अफसरों के पाप और छाती कूटती सरकार.. राघवेंद्र सिंह


स्टोरी हाइलाइट्स

एक साल का कोरोना अपने नए आक्रमक रूप में सबसे ज्यादा मारक दौर में है। बहुत डराने और रुलाने वाली खबरें आ रही हैं। देश में अब रोजाना करीब ढाई लाख लोग संक्रमित.

कोरोना काल: मत कर माया को अहंकार, अफसरों के पाप और छाती कूटती सरकार.. राघवेंद्र सिंह " मत कर काया को अभिमान काया गार से कांची " इसलिए दवा, इंजेक्शन और ऑक्सीजन आदि की कालाबाजारी मत करो.. राघवेंद्र सिंह एक साल का कोरोना अपने नए आक्रमक रूप में सबसे ज्यादा मारक दौर में है। बहुत डराने और रुलाने वाली खबरें आ रही हैं। देश में अब रोजाना करीब ढाई लाख लोग संक्रमित हो रहे हैं। ये आंकड़ा और बढ़ भी सकता है। ऐसे में सरकारें और उनका बोझ बना सरकारी तंत्र सबसे खराब, घटिया, बदसूरत और बदरंग शक्ल में है। आमजन का सरकार से और उसके अफसरों से भरोसा उठ रहा है। पिछले बरस जो लड़ाई कोरोना से सब ने मिलकर लड़ी थी वो जज्बा गायब है। चौतरफा लाचारी,निराशा का घटाटोप है। मंत्रालय से लेकर मैदान तक जो सरकार-प्रशासन के साथ सियासी दल, स्वयं सेवी संगठन और देश के औद्योगिक घराने स्वस्फूर्त सक्रिय थे। पूरी दुनिया ने हमारी कोशिशों को सलाम किया था। हमारी छाती तनी थी। मगर अब सब छाती कूटते - पीटते दिख रहे हैं। अर्थव्यवस्था भी पटरी पर आती दिखी। सब उम्मीद से कई गुना शानदार था। हिंदुस्तानियों का सीना 56 नही बल्कि 100 इंच का हो रहा था। पिछली दीवाली भी अच्छी गुजरी। नया साल भी इस उम्मीद से मनाया गया कि 2021 वेक्सीन के जरिए ही सही कोरोना को काबू में रखने वाला होगा। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर वेक्सीन कम लगवाने , चुनाव कराने , कुम्भ कराने और मास्क लगाने में हमारी लापरवाही के चलते सुनामी बन गई। हम पांच प्रदेशों की सत्ता के लिए चुनाव में जुट गए। कल तक जो शेर बने, छाती ठोंकते फिर रहे थे वे नेता रंगे सियार प्रमाणित हो रहे हैं। भीगी बिल्ली बने हैं। घिघ्घी बंधी हुई है। जनता अस्पतालों में पलंग,दवा, आक्सीजन के अभाव में मर रही है। बेबसी का आलम यह है कि इलाज के लिए गिड़गिड़ाते गिड़गिड़ाते गले सूख रहे और अपनों को खोने वालों के आसूं ही आंखों में नही बचे। साधनों के अभाव में मदद करने वाले नेता और उनका प्रबन्धन तो मानो पत्थर का हो गया है। जिन पर व्यवस्था बनाने का जिम्मा है वे बुरी तरह फेल हो गए हैं। लाखों का वेतन और राजाओं जैसी सुविधा पाने वाले जिन अफसरों के जिम्मे कोरोना काल में जनता बचाने का दायित्व था उनकी लापरवाही, अदूरदर्शिता, मक्कारी से हजारों घरों के लाखों बच्चों को अनाथ कर दिया। प्रशासन का यह पाप सरकारों के मंत्री और उसके मुखियाओं के माथे है। गांव- देहातों में एक मान्यता है है कि पूर्व जन्म में जो संत- महात्मा और योगी होते थे वे कुछ त्रुटियों या गलतियों के चलते पथ भृष्ट होने के कारण राजा बनते थे। इसलिए कहा जाता है योगेश्वर सो राजेश्वर। एक लाइन और जुड़ती है राजेश्वर सो नरकेश्वर। राजेश्वर होने पर उनके या उनके अधीनस्थों के पाप के कारण ऐसे राजा नरक में जाते हैं। अर्थात राजेश्वर सो नरकेश्वर। पूरे देश मे महामारी के हालात रुलाने वाले हैं। आक्सीजन-दवा, डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ के अभाव में बेटे के सामने माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी तड़पते हुए उनके सामने दम तोड़ रहे हैं। देश भर में सरकारें और अफसर असफल हो रहे हैं। ऐसे में अपयश का शिकार हो रहे सत्ताधीशों के अपने तंत्र पर नाराज होने,छाती कूटने की खबरें आ रही हैं। बदहाली के बीच हालात बेकाबू देश में कोरोना पीड़ितों का आंकड़ा एक हफ्ते में जेट की स्पीड से लगभग दो गुना बढ़ गया। सवा लाख था अब संख्या ढाई लाख को छू रही है। जांच की संख्या बढ़ाई जाए तो अनुमान है कि हर तीसरा भारतीय कोरोना की चपेट में है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान बेहद चिंतित हैं। अफसरों से साथ बैठकों के बाद निर्णय और फिर निर्देशों पर अमल नही होने से हताशा बढ़ रही है। उनके आसपास का तंत्र बेअसर साबित हो रहा है। तेजतर्रार मुख्यसचिव इकबाल सिंह बेन्स भी फेल होते दिख रहे हैं। कलेक्टर और नगरनिगम के साथ राजनीतिक दलों के नेता कार्यकर्ता, एनजीओज नजर नही आ रहे हैं। पिछले साल सब एक साथ टीम वर्क कर रहे थे। लॉक डाउन में गरीब से लेकर जरूरतमंदों को दवा - भोजन आदि के इंतजाम हो रहे थे। उद्योगपतियों में रतन जमशेद जी टाटा से लेकर अम्बानी- अडानी, महेंद्रा एन्ड महेंद्रा और बजाज व बिड़ला ग्रुप आदि अनेकों ने जो जहां और जिस हैसियत में था सबने काम किया। कोई पीपीई किट बना रहा है तो कोई वेंटिलेटर। मगर इस बार सब गायब हैं। ऐसे मौके पर बड़े घराने स्टेडियम को ही अस्पताल बनाने काम कर सकते हैं। नैतिकता का संकट पैदा हो गया है। नेतागण चुनाव में मसरूफ हैं।सत्ता मिल जाए फिर देखा जाएगा। जहां सत्ता में है वहां अक्षम अफसरों ने मरने के इंतजाम ज्यादा कर रखे हैं। सख्त फैसले की जरूरत है। विपक्ष जनता की मदद कम सरकार की आलोचना पर ज्यादा केंद्रित है। यह आसान भी है। अभी भी समय नही निकला है। लेकिन देरी हुई तो बेमौत मरने वालों की बद्दुआ सब कुछ भस्म करने का माद्दा रखती हैं। इस बात को जानते हुए लापरवाही करने वालों को तो ऊपर वाले के यहां भी माफी शायद ही मिले...महामारी को लेकर खबरें अच्छी नही आ रहीं है। खैरियत से हूं अपने शहर में, तुम अपने शहर में हिफाजत से रहना... किसी का हाथ छूना नही पर किसी का साथ छोड़ना नही... मन बहुत दुखी है...प्रार्थना है प्रभु से हम बच्चों पर कृपा करें...आने वाला समय शुभ और कल्याणकारी हो... काया गार से कांची कोरोना काल में बहुत प्रासंगिक है राजस्थान के कबीरपंथी लोकगायक भवानी नाथ की मशहूर रचना। शेयर घोटाले को लेकर हर्षद मेहता पर बनी बेव सीरीज " हर्षद मेहता स्कैम 1992" के आखिरी सीन। अस्पताल की बेंच पर सीने में दर्द से अकेला तड़पते हर्षद मेहता की इलाज के बिना मौत हो जाती है। तभी बैकग्राउंड म्यूजिक में ये गाना बजता है। सौ सौ हाथों से बेहिसाब दौलत शौहरत कमाने वालों की आंखें खोलने की कोशिश करता लगता है। यह गाना खूब सुना और सराहा जा रहा है। इसे ध्यान से पढ़ें और यू ट्यूब पर देखें व सुने भी... विश्वास है महामारी काल मे कुछ दिनों के लिए ही सही सोच बदल जाएगी जो लोग दिन-रात,धन-दौलत, शबाब और शौहरत के लिए लगे पड़े हैं... मत कर माया को अहंकार मत कर काया को अभिमान काया गार से कांची मत कर माया को अहंकार मत कर काया को अभिमान काया गार से कांची हो काया गार से कांची रे जैसे ओस रा मोती झोंका पवन का लग जाए झपका पवन का लग जाए काया धूल हो जासी काया तेरी धूल हो जासी ऐसा सख्त था महाराज जिनका मुल्कों में राज जिन घर झूलता हाथी जिन घर झूलता हाथी हो जिन घर झूलता हाथी उन घर दिया ना बाती झोंका पवन का लग जाए झपका पवन का लग जाए काया धूल हो जासी काया तेरी धूल हो जासी खूट गया सिन्दड़ा रो तेल बिखर गया सब निज खेल बुझ गई दीया की बाती हो बुझ गई दीया की बाती रे जैसे ओस रा मोती झोंका पवन का लग जाए झपका पवन का लग जाए काया धूल हो जासी काया तेरी धूल हो जासी झूठा माई थारो बाप झूठा सकल परिवार झूठी कूटता छाती झूठी कूटता छाती हो झूठी कूटता छाती रे जैसे ओस रा मोती बोल्या भवानी हो नाथ गुरुजी ने सर पे धरया हाथ जिनसे मुक्ति मिल जासी रे जैसे ओस रा मोती झोंका… झोंका… मत कर माया को अहंकार मत कर काया को अभिमान काया गार से कांची हो काया गार से कांची रे जैसे ओस रा मोती झोंका पवन का लग जाए झपका पवन का लग जाए काया धूल हो जासी काया तेरी धूल हो जासी काया तेरी धूल हो जासी...