पेट के रोगों में अदरक (ginger) के ये प्रयोग चमत्कारिक हैं , गैस से लेकर अपच और कब्ज तक ,जाने कैसे करें प्रयोग 


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पेट के रोगों में अदरक(ginger) के ये प्रयोग चमत्कारिक हैं , गैस से लेकर अपच और कब्ज तक जाने कैसे करें प्रयोग these-uses-of-ginger-in-stomach-diseases-are...

पेट के रोगों में अदरक (ginger) के ये प्रयोग चमत्कारिक हैं , गैस से लेकर अपच और कब्ज तक ,जाने कैसे करें प्रयोग    अपच, अपसेट स्टमक और अग्निमान्ध में अदरक(ginger) का उपयोग अदरक(ginger) या आद्रक, जिसे अंग्रेजी में जिंजर कहते हैं, अनेक रोगों में लाभकारी औषधि का काम करता है, डाइजेशन संस्थान पर उसका अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जब अदरक(ginger) सूख जाता है, तब वही सौंठ बन जाता है। उस रूप में भी वह आयुर्वेद में अनेक औषधि- योगों में यूज़ होता है। अदरक(ginger) के उत्पादन के लिये किसी विशेष प्रकार की भूमि या देखभाल की भी आवश्यकता नहीं होती। जहाँ मूली, गाजर, शकरकन्द, आलू  उत्पन्न किये जाते हैं, वहीं अदरक(ginger) को सरलता से उत्पन्न किया जा सकता है। इसके छोटे-छोटे टुकड़े धरती में गाड़ देने से ही बड़े होते जाते हैं। घरों में भी गमले etc. में इसी प्रकार अदरक(ginger) को उत्पन्न किया जा सकता है। वस्तुतः अदरक(ginger) का कोई बीज नहीं होता। Indigestion, पेट दर्द, कब्ज, गैस, विभिन्न रोगों में अदरक(ginger) अदरक-नींबू की चाय: सेहत के लिए फायदेमंद ऋतु परिवर्तन के कारण उत्पन्न विकार, अपचादि पेट विकार, ज्वर, श्लेष्म-ज्वर (इन्फ्ल्यूऐंजा), शरीर में दर्द, गले में दर्द, खाँसी, सिर में भारीपन, नेत्रों से पानी जाना, जुकाम etc. में अदरक(ginger) बहुत लाभकारी होता है। क्षयादि रोगों में भी इसका सेवन अनेक उपसर्गों (उपद्रवों की निवृत्ति) के लिये, अन्यान्य औषधि द्रव्यों के योग एवं मधुयोग से किया जाता है। ऐलोपैथी में भी इसका प्रयोग विभिन्न औषधियों और पेयों के रूप में सफलता पूर्वक किया जा रहा है। रुचिवर्धक होने के कारण इसके सेवन के प्रति प्रायः अनिच्छा नहीं होती। डाइजेशन तन्त्र पर अदरक(ginger) का अनुकूल प्रभाव पड़ता है, उस कारण अपच, अपसेट स्टमक का शमन होना सहज सम्भव है। क्योंकि अपच, अपसेट स्टमक की उत्पत्ति गरिष्ठ पदार्थों के खाने etc. कारणों से, विशेष रूप से होती है, और अदरक(ginger) में उस प्रकार के आहार को पचाने की शक्ति है, इसलिये इसका प्रभाव भी जल्द  दिखता है। अपच, अपसेट स्टमक की उत्पत्ति में जो सहायक कारण दिन में सोना, नाईट  जागरण, भोजन के बाद लेटना, मल मूत्र का वेग रोकना etc. हैं, उनका निषेध स्वीकार करना तो आवश्यक है ही, साथ ही अपच, अपसेट स्टमक के व्यक्त लक्षण बमनेच्छा, खट्टी-मीठी डकारें, कलेजे का भारीपन, शरीर का भारीपन, पेट पर अफरा, दर्द, कब्ज etc. को दूर करने में भी अदरक(ginger) प्रकृति की अद्भुत देन के रूप में उपलब्ध है। इसके लिये अदरक(ginger) के योग यहाँ प्रस्तुत हैं| अदरक(ginger) के अनेक योग अदरक(ginger) का रस एक चम्मच में नमक, जीरा तथा किंचित नीबू का रस मिला कर पीने से ही उक्त विकारों में पर्याप्त लाभ प्रतीत होता है। शीघ्रता में अन्य वस्तुएँ न मिलें तो केवल अदरक(ginger) का रस सेवन कर लेना ही काफी  है। अदरक(ginger) का रस 3-4 चम्मच में अनार का रस भी उतना ही मिला कर पीने से अरुचि, खट्टी डकारें, जी मिचलाना, गले में जलन, अपच etc. लक्षणों में पर्याप्त लाभ होता है। क्योंकि अदरक(ginger), अनार का यह मिश्रण तत्काल लाभ दिखाता है। माइग्रेन के दर्द से परेशान? तो आजमाएं ये टिप्स-अतुल विनोद अदरक(ginger) को पीस कर अपेक्षित नमक, जीरा डालकर उसका पतला शाक अथवा सूप बनाकर पीने से अपच, अपसेट स्टमक और उसके सभी उपद्रव दूर हो जाते हैं। यदि इस सूप में नींबू का रस भी डाल लिया जाय तो स्वाद भी बढ़ता है और लाभ भी अधिक होता है। अदरक(ginger) स्वरस 3-4 चम्मच को गोघृत 4-5 ग्राम में मिला कर सेवन किया जाय तो अपच, अपसेट स्टमक के कारण या अन्य कारण से भी उत्पन्न शीत- पित्त में तुरन्त लाभ होता है। अदरक(ginger) का रस और प्याज का रस मिला कर सेवन करने से अपच, अपसेट स्टमक, पेट फूलना, दस्त होना etc. लक्षणों में शीघ्र लाभ होता है। इसमें नींबू का रस भी मिलाया जा सकता है। अदरक(ginger) का रस और गुड़ मिला कर सेवन करना भी अपच, अरुचि शीत-पित्त etc. में लाभकारी है। यदि नींबू की शिकंजी में अदरक(ginger) स्वरस की कुछ बूँदें डाल कर पियें तो उसके गुणों में वृद्धि हो जाती है। उससे अपच etc. के निवारण में सहायता मिलती है। पेट में गैस बनने के कारण, लक्षण और इससे निजात पाने के अचूक उपाय अदरक(ginger) का स्वरस, तुलसी स्वरस का मिश्रण भी अपच में उपयोगी होता है। उसमें अपेक्षित मात्रा में नमक, जीरा मिला सकते हैं। अदरक(ginger) के टुकड़ों में जीरा, हींग, काला नमक और नींबू निचोड़ कर खाने से अपच, अरुचि etc. में पर्याप्त लाभ होता है। भोजन के प्रथम ग्रास में, बीच बीच में या भोजनोपरान्त इसका सेवन अन्न पचाने में पर्याप्त सहायता करता है। अपच नाशक आद्रकादि लेह अदरक(ginger) का स्वरस 1 लीटर, विजौरा नींबू का स्वरस 200 मिली लीटर तथा गुड 320 ग्राम। सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, तेजपात, धमासा, दालचीनी, बड़ी इलायची के दाने चित्रक मूल, पीपला मूल, त्रिफला, श्वेत जीरा, काला जीरा और धनिया 10-10 ग्राम । निर्माण विधि– प्रक्षेप द्रव्यों को कूट- छान कर रखें, स्वरस और गुड़ को एक साथ मन्दाग्नि पर पकाएं और पतली चाशनी (एक तार की) रहने पर नीचे उतार कर उसमें प्रक्षेप द्रव्यों का चूर्ण मिलाएं। और लकड़ी के करछुले से एकजीव कर लें तथा रखें। मात्रा– 1 से 2 चम्मच तक भोजन के आधा घण्टे बाद सेवन करें। इससे अपच, अरुचि, गुल्म, अफरा etc. अनेक प्रकार के पेट विकार दूर हो जाते हैं। श्वास, कास, पाण्डु, क्षय तथा प्लीहा etc. में भी यह लेह अत्यन्त उपयोगी है। मन्दाग्नि में आद्रकाद्यावलेह अदरक(ginger) का स्वरस 1 लीटर और पुराना गुड़ 225 ग्राम तथा प्रक्षेप द्रव्य– सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, तज, पत्रज, छोटी इलायची के बीज और नागकेशर 5-5 ग्राम।  निर्माण विधि– प्रक्षेप द्रव्यों को कूट कपड़छन करके रखें। आद्रक स्वरस को गुड़ के साथ मन्दाग्नि पर पकावें। और एक तार की चाशनी होने पर प्रक्षप द्रव्य उसमें मिलावें और सुरक्षित रखें । मात्रा– 1 ग्राम से 5 ग्राम तक भोजनोपरान्त लेनी चाहिये। आवश्यकता होने पर अधिक मात्रा ले सकते हैं। इससे अरुचि, अपच, अपसेट स्टमक, मन्दाग्नि etc. में पर्याप्त लाभ होता है। कासश्वास में भी बहुत उपयोगी है। स्वादिष्ट अपच, अपसेट स्टमकवटी कालीमिर्च, छोटी पीपल, अकरकरा 15-15 ग्राम, सेंधा नमक और साँभर नमक 30-30 ग्राम, काला नमक 120 ग्राम, भीमसेनी कर्पूर और कस्तूरी 150 मिलीग्राम अदरक(ginger) का स्वरस 200 मिलीलीटर, कागजी नींबू का स्वरस 1 लीटर। विधि– मिर्च, पीपल, अकरकरा को कूट कपड़छन करें तथा नमकों को पृथक पीस कर मिलावें। फिर इन एकत्रित द्रव्यों को अदरक(ginger) के रस के साथ खरल करके सुखा लें और फिर सबको नींबू के रस में डाल कर मन्दाग्नि से पकावें और लकड़ी के करछुळ से चलाते हुए, जब वह चाटने योग्य गाढ़ा हो जाय तब नीचे उतार लें और उसमें कर्पूर और कस्तूरी महीन करके मिला दें। तदुपरान्त यवक्षार 1 ग्राम मिला कर खरल करें। जब गोली बनाने योग्य हो जाय तब चना के बराबर गोलियाँ बना कर छाया में सुखा लें। गोलियाँ बनाते समय यदि इसमें कस्तूरी का एसेंस भी आवश्यकतानुसार डाल लें तो सुगन्धित एवं रुचिकर बनेंगी। हाजमे और जायका ठीक करने के लिये यह गोलियाँ 1-2 लेकर चूसने या खाने से अरुचि, अपच, अपच, अपसेट स्टमक, अफरा, पेट दर्द, वायु का अवरोध, खट्टी मीठी डकारें, बमनेच्छा etc. विकार दूर हो जाते हैं तथा भूख लगती है, मन्दाग्नि दूर होती है। बनाएं मैथी दाना के स्वादिष्ट और स्वास्थ्य वर्द्धक व्यंजन वायुगोला पर एक अपूर्व योग अदरक(ginger) का स्वरस, कागजी नींबू का स्वरस, खीरा का स्वरस 100-100 मिली लीटर, हींग असली (भुनी हुई) 25 ग्राम, अजवाइन 2 ग्राम, सुहागा फुलाया हुआ 1 ग्राम, अपामार्ग मूल 1 ग्राम, पीली कौड़ी की भस्म 1 ग्राम, लौहकान्त भस्म 1 ग्राम लेकर काँच के अमृतवान में रखकर, उस पर खुली धूप लगने दें। पात्र पर काँच का ही ढक्कन लगा रहने दें। इस प्रकार यह पात्र धूप के स्थान में 3 सप्ताह रखें। तदुपरान्त इसका व्यवहार औषधि रूप में किया जा सकता है। मात्रा– 5 से 10 बूँद तक गर्म जल में मिला कर सेवन करने से इससे अफरा तथा वायुगोला के दर्द में लाभ हो जाता है। अफरा, पेट दर्द  पर लेप एरण्डमूल 20 ग्राम, एलुआ और भुना सुहागा 10-10 ग्राम सेंधा नमक 4 ग्राम, हींग 2 ग्राम लेकर बैंगन के स्वरस में पीस कर गर्म करें तथा पेट  पर नाभि और उसके आसपास एरण्ड तेल चुपड़ कर, इस दवा का लेप कर दें। आवश्यक होने पर यह लेप 3-3 घण्टे के अन्तर से, दिन में 2-3 बार किया जा सकता है, किन्तु नाईट में यह लेप नहीं करना चाहिये। इस लेप के प्रभाव से पेट दर्द, अफरा, वायु का अवरोध, कब्ज etc. का विकार तथा पेट में भारीपन etc. की शिकायत दूर हो जाती है।