महाशक्ति, पराशक्ति, आदिशक्ति कौन है? उसका वास्तविक स्वरुप क्या है?
स्टोरी हाइलाइट्स
यमाराध्य विरिञ्चिरस्य जगतः स्रष्टा हरिः पालकः संहर्ता गिरीश: स्वयं समभवद्धयेया च या योगिभः । यामाद्यां प्रकृतिं वदन्ति,महाशक्ति, पराशक्ति, आदिशक्ति कौन है
महाशक्ति, पराशक्ति, आदिशक्ति कौन है? उसका वास्तविक स्वरुप क्या है?
यमाराध्य विरिञ्चिरस्य जगतः स्रष्टा हरिः पालकः संहर्ता गिरीश: स्वयं समभवद्धयेया च या योगिभः ।
यामाद्यां प्रकृतिं वदन्ति मुनयस्तत्त्वार्थविज्ञाः परां तां देवीं प्रणमामि विश्वजननीं स्वर्गापवर्गप्रदाम ॥
[caption id="attachment_30241" align="aligncenter" width="1516"] INDIAN WOMEN DEVI[/caption]
जिनकी आराधना करके स्वयं ब्रह्माजी इस जगत के सृजनकर्ता हुये, भगवान विष्णु पालनकर्ता हुये तथा भगवान शिव संहार करने वाले हुये। योगिजन जिनका ध्यान करते हैं और तत्त्वार्थ जानने वाले मुनिगण जिन्हें मूल प्रकृति कहते हैं। स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाली उन जगज्जननी भगवती को मैं प्रणाम करता हूँ। है यह भगवती ? कौन है यह देवी ? भगवत्पाद श्री शंकराचार्य जी वेद, उपनिषद्, पुराण, इतिहास आदि सभी प्राचीन ग्रन्थों में सर्वत्र भगवती की, देवी की अपरम्पार महिमा का वर्णन है।
जापान में क्यूँ होती है भारतीय देवी देवताओं की पूजा? P अतुल
शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शकृ: प्रभवितुं न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि ।
अतस्त्वामाराध्यां हरिहर विरिञ्चादिभिरपि प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्यः प्रभवति ॥
शिव शक्ति से युक्त होता है तब वह सृष्टि के निर्माण में समर्थ होता है नहीं तो उसमें स्पन्दन तक नहीं होता। तुम ब्रह्मा, विष्णु, शिव सभी की आराध्या हो। तुम्हारी स्तुति पुण्यहीन व्यक्ति से कैसे हो सकती है। परमाशक्ति तुम्हारी स्तुति के लिये तो पुण्यभाग होना ही होगा। भगवती शक्तिस्वरूपा है। महादेवी है, महाशक्ति है, आदिशक्ति है । पराशक्ति है। यह आत्मशक्ति है और यही विश्वमोहिनी भी है। उपनिषद् में कहा गया है
एषात्मशक्तिः । एषा विश्वमोहिनी पाशाङ्कुशधनुर्वाणधरा ।
एषा श्री महाविज्ञा । य एवं वेद स शोकं तरति ।
यह महाविद्या है, यही वेद है और यही सभी दुःखों, कष्टों को दूर करने वाली है। सभी विद्यायें देवी के भेद हैं। देवी स्त्री रूपा है। विश्व की समस्त स्त्रियाँ देवी का ही रूप हैं। भगवती स्त्री है; महाशक्ति, पराशक्ति, आदिशक्ति स्त्री है; समस्त विद्यायें स्त्री हैं । सम्पूर्ण विश्व में एक ही तत्व की व्याप्ति है; शक्तितत्व की, देवी तत्व की, स्त्रीतत्व की । सम्पूर्ण विश्व स्त्रीमय है, शक्तिमय है। विद्यायें स्त्री हैं, शक्ति स्त्री है। स्त्रीविहीन विश्व में बचता ही क्या है ? मात्र अज्ञानता, अकर्मण्यता, स्पन्दहीन जड़ता ।
देवी ही सृष्टिकर्ता है; देवी ही जगत गुरु है … परमात्मा की परमेश्वरी से ही पैदा होते हैं ब्रम्हा-विष्णु-महेश .. P अतुल विनोद
दुर्गासप्तमी में समस्त देवता स्त्री रूपी देवी की, भगवती की वन्दना करते हैं
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ॥
देवता कहते हैं- हे ! स्त्री रूपा देवी, हे ! स्त्री रूपा शक्ति, तुम्हारे अतिरिक्त स्तुति किसकी की जाय। किसकी अभ्यर्थना-वन्दना की जाय ।
विश्व में जो भी चर-अचर, जड़-चेतन, देव-दानव-मानव हैं, सभी स्त्री रूपा शक्ति से अनुप्राणित हैं ।
स्त्री सनातनी है, कारणभूता है, सर्व देवमयी है। वह गुणत्रयी (सत्, रज, तम) स्वरूपा है। वह पापहारिणी भी है और भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी भी है। सर्वत्र एक ही रहती है वह, हर कल्प में, हर काल में। वह एका है, परन्तु वही अनेका भी है क्योंकि वह विश्वरूपिणी है। अद्भुत है, अत्यंत रहस्यमयी है यह स्त्री रूपी शक्ति, यह सर्वत्रव्यापिनी। जगदम्बिका स्त्री है। समस्त सृष्टि का सृजन करने वाली है।
स्त्री रूपा शक्ति, महादेवी के सम्बन्ध में महामुनि नारद को जिज्ञासा होती है। अपनी जिज्ञासा वह देवाधिदेव महादेव से प्रकट करते हैं। श्री महादेव जी नारद को बताते हैं
या मूल प्रकृतिः शुद्धा जगदम्बा सनातनी ।
सैव साक्षात्परं ब्रह्म सास्माकं देवतापि च ॥
अयमेको यथा ब्रह्मा तथा चायं जनार्दनः ।
तथा महेश्वरश्चाहं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥
एवं हि कोटिकीटानां नानाब्रह्माण्डवासिनाम् ।
सृष्टिस्थितिविनाशानां विधात्री सा महेश्वरी ॥
अरूपा सा महादेवी ललिया देहधारिणी ।
तयैतत्सृज्यते विश्वं तथैव परिपाल्यते ॥
विनाश्यते तयैवान्ते मोहयते तथा जगत् ।
सैव स्वलीलया पूर्णा दक्षकन्याभवत्पुरा ॥
तथा हिमवतः पुत्री तथा लक्ष्मी सरस्वती ।
अंशेन विष्णोर्वनिता सावित्री ब्रह्मणस्तथा ॥
(देवीपुराण: देवी माहात्म्य वर्णन) जो मूल प्रकृति हैं, मूल प्रकृति स्वरूपा जगत्जननी जगदम्बा हैं, शुद्ध शाश्वत् और सनातन हैं; वे ही साक्षात् परमब्रह्म हैं, वे हमारी भी आराध्य और देवता हैं।
जिस प्रकार स्वयं मैं शिव, साथ में ब्रह्मा और विष्णु इस संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार के कार्य में नियुक्त हैं, उसी प्रकार वह महेश्वरी भी अनेकानेक ब्रह्माण्डों में निवास करने वाले कोटि-कोटि प्राणियों के सृजन, पालन और संहार का विधान करने वाली हैं।
निर्गुण निराकार रहते हुये भी वह महादेवी स्वयं अपने लीलाविलास से अनेकानेक ह-रूप धारण करती हैं। उन्हीं के द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन देह- किया जाता है, पालन-पोषण किया जाता है और अंत में उन्हीं के द्वारा संहार भी कर दिया जाता है। उन्हीं की माया से यह जगत् माया-मोह से ग्रसित होता है।
अनादि काल में वह पूर्णा भगवती, परमशक्ति अपनी ही लीला से दक्ष की कन्या सती के रूप में, हिमवान् की पुत्री पार्वती (कोली) के रूप में तथा अपने ही अंश से विष्णुपत्नी लक्ष्मी के रूप में तथा ब्रह्मा भार्या सावित्री तथा सरस्वती रूप में प्रकट हुईं।
देवी माँ के नौ स्वरूप -दिनेश मालवीय