स्कूलों में स्लेट- बत्ती के प्रयोग पर बल


स्टोरी हाइलाइट्स

यदि आज युवक अपनी संयत - वृत्ति और स्वस्थ चिंतन द्वारा परिवार को स्वस्थ वातावरण दे सके तो वह स्वस्थ समाज की संरचना में योगदान दे सकता है।

कागज का भी कम से कम प्रयोग करने की आदत डालें संयम ही जीवन है, सबसे सम्पन्न व्यक्ति वह है , जो आवश्यकता को कम करता है। एवं वह बाहरी वस्तुओं पर कम निर्भर रहता है। घर- परिवार , ग्राम - नगर आदि सभी की परिस्थितियां हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। पारिवारिक वातावरण के असंतुलन से भी अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों का जन्म होता है। यदि आज युवक अपनी संयत - वृत्ति और स्वस्थ चिंतन द्वारा परिवार को स्वस्थ वातावरण दे सके तो वह स्वस्थ समाज की संरचना में योगदान दे सकता है। खान-पान की शुद्धि औरव्यसन- मुक्ति भी पर्यावरण की सुरक्षा के प्रमुख रूप हैं। खान - पान की विकृति  ने मानवीय सोच को प्रदूषित कर दिया है। सम्पूर्ण जीव - जगत के साथ मानव के भावनात्मक सम्बन्ध को पूर्णत: नष्ट कर दिया है।   हिंसा की भावना ने मानवीय मूल्यों को पूर्ण रूप से विनष्ट कर दिया है। इससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है। वाहनों का प्रदूषण , फैक्ट्रियों का धुंवा ,परमाणु - परीक्षण आदि पर रोक लगाना आवश्यक है, अन्यथा विश्व का पतन होता चला जायेगा। प्रकृति का असंतुलन बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक क्रांति और वैज्ञानिक आविष्कारों ने उपभोक्ता संस्कृति को प्रोत्साहन ही दिया है। व्यक्ति की लाभवादी भावना अब सीमित हो गयी है, अपितु उसमें लोभवादी - संस्कृति का जन्म होने लगा है। आज व्यक्ति लोभ की वृत्ति के कारण प्रकृति के संसाधनों का मनमर्जी से इस्तेमाल कर रहा है। परिणामत: वह प्रकृति से दूर होता जा रहा है। पर्यावरण की दिन- प्रतिदिन विकराल और भयंकर रूप धारण करती जा रही है। पर्यावरण का संरक्षण या विनाश व्यक्ति की अपनी सोच पर अत्यधिक निर्भर करता है। यदि वह थोडा सा भी प्रयास करे तो बहुत कुछ बदला जा सकता है। बस एक शुरू करने की बात ही है , शुरू करने के विचार से ही प्रयास प्रारम्भ होजाते हैं। पोलीथिन के प्रयोग न करने के भाव से ही प्रारंभ किया जा सकता है। कागज का भी कम से कम प्रयोग करने की आदत डालें , स्कूलों में भी स्लेट- बत्ती आदि के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। प्रारंभ तो करें इंतजार किसकी है ; स्वयं के विचार को आगे बढ़ाने की बस देर है।