स्टोरी हाइलाइट्स
बिहार से प्रेरणा ले सकते हैं राज्य कोरोना महामारी से भारत में मरने वालों की संख्या को कई तरह की शंकाओं का काफी लंबा सिलसिला है।......
बिहार से प्रेरणा ले सकते हैं राज्य
कोरोना महामारी से भारत में मरने वालों की संख्या को कई तरह की शंकाओं का काफी लंबा सिलसिला है। अन्य देशों तक में इसे लेकर बातें कहीं जा चुकी हैं। अब बिहार सरकार ने कोरोना से राज्य में हुई मौतों की आधिकारिक संख्या में संशोधन से बवाल पैदा कर दिया है, साथ में कई सवाल भी नत्थी हो चलें हैं।
हालांकि पूरा मामला बिहार सरकार के आंकड़ों की गफलत से जुड़ा है इससे देश में निरंतर सुधरते हालात पर कोई सवाल नहीं उठ सकता। मगर मौतों की संख्या छिपाए जाने के आरोपों के बीच पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को अप्रैल और मई में कोरोना से हुई मौतों की संख्या का ऑडिट कराने को कहा था।
लिहाजा आडिट के बाद सरकार ने संशोधित आंकडे जारी किए, जिससे बिहार में कोरोना से मौतों की संख्या में एक ही दिन में 3951 बढ़ गई। इसमें उन मौतों को भी शामिल किया गया है, जो निजी अस्पतालों या होम क्वारंटीन में हुई। एक बार ठीक हो जाने के बाद पोस्ट कोरोना कॉम्प्लिकेशंस से हुई मौतें भी इनमें शामिल हैं और अस्पताल के रास्ते में हुई मौतें भी दर्ज की गई हैं।
वैसे तो यह काम पहले होना था। बावजूद अच्छी बात यह है कि बिहार सरकार ने न केवल अपनी संख्या दुरुस्त करने में झिझक बरती बल्कि आगे भी सबूत मिलने पर इस संख्या को संशोधित करने की तैयारी दिखा रही है। देरी से सही या कोर्ट के आदेश से ही सही लेकिन बिहार ने जो किया वह अन्य राज्यों के लिये भी प्रेरणा बनना चाहिये और मौतों का सही आंकडा सामने रखना चाहिये। क्योंकि सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले देश में संक्रमण का हर मामला और मौत तत्काल सरकारी रेकॉर्ड पर आए, यह संभव नहीं है। इसीलिए यह बात कही जा रही है कि भारत में कोरोना से हुई मौत के सरकारी आंकडे वास्तविक मौतों की संख्या से कम है।
अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं ने तो अपनी अपनी गणना के अनुसार मौत की अनुमानित संख्या सरकारी आंकडे से कई गुना तक ज्यादा बताई है। मौत के आंकड़ों में यदि विश्वसनीयता व सटीकता रहेगी तो भविष्य में आने वाली महामारियों से निपटने की तैयारी में भी मदद मिलेगी। इसके मुताबिक बेहतर स्वास्थ्य अधोसंरचनाएं तैयार हो सकेंगी। कई राज्य सरकारें सही आंकडे को छुपाने की तथ्य-कथ्य कोशिश करती रही हैं। इसके पीछे कई तरह के राजनीतिक तकाजे भी होते हैं।
आलोचनाओं और असफलता के ठप्पे से बचने के जतन भी होते हैं, मगर यह दौर इन सभी से ऊपर उठकर देखने की मांग कर रहा है। एक सभ्य समाज के तौर पर हर मौत को सम्मान देना जरूरी है। क्योंकि यह कालखंड पूरे समाज से कुछ ज्यादा उदारता और मानवीयता की अपेक्षा कर रहा है।
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