मध्य प्रदेश में जनजातियाँ और उनका जीवन


स्टोरी हाइलाइट्स

वर्ष 2000 में जब मध्यप्रदेश का विभाजन होकर आदिवासी बहुत छतीसगढ़ अंचल एक स्वतंत्र राज्य बन गया, तब ऐसा कहा जाता था कि मध्य प्रदेश लगभग आदिवासी विहीन हो गया है. लेकिन यह सच नहीं है. यहाँ अब भी जानजातियों की संख्या 20  प्रतिशत से अधिक है.

वर्ष 2000 में जब मध्यप्रदेश का विभाजन होकर आदिवासी बहुत छतीसगढ़ अंचल एक स्वतंत्र राज्य बन गया, तब ऐसा कहा जाता था कि मध्य प्रदेश लगभग आदिवासी विहीन हो गया है. लेकिन यह सच नहीं है. यहाँ अब भी जानजातियों की संख्या 20  प्रतिशत से अधिक है. मध्य प्रदेश कि प्रमुख जनजातियों में गोंड, भील, भिलाला,कोरकू, सहरिया, कोल, भारिया और गोवारी शामिल हैं. इनमें से सहरिया, भारिया और बैगा विशेष पिछड़ी जनजातियों (primitive tribes or vulnerable tribes) में शामिल हैं. मध्य प्रदेश कि सबसे बड़ी और प्रमुख जनजाति गोंड है, जिसके लोग पदेश के सगभग सभी जिलों में रहते हैं. भील जनजाति के लोग प्रमुख रूप से धार, खंडवा और झाबुआ जिलों में हैं. कोरकू जनजाति के लोग मुख्य रूप से खंडवा, बैतूल, होशंगाबाद और छिंदवाडा में निवास करते हैं. कोल रीवा और जबलपुर, भारिया जबलपुर और छिंदवाडा, बैगा बालाघाट, मंडला और शहडोल, बैगा बालाघाट, मंडला और शहडोल, सहरिया मुरेना, शिवपुरी और गुना तथा अगरिया जनजाति के लोग शःदूल, मंडला तथा सीधी में मुख्य रूप से रहते हैं. इन सभी जनजातियों के अपने-अपने रीति-रिवाज, खानपान, परिधान, आभूषण, संस्कृति, जीवनशैली तथा अन्य पहलू हैं. न्यूज़ पुराण में हम प्रदेश कि इन जनजातियों के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं की चर्चा करेंगे. आपके सुझावों और अनुशंसाओं का स्वागत है.