सफलता का मंत्र:- माता पिता की सेवा से जीवन धन्य होता है


स्टोरी हाइलाइट्स

चाणक्य नीति का कहना  है कि माता पिता से बढ़कर कोई नहीं है. हर संतान का माता पिता की सेवा करना प्रथम फर्ज है.

सफलता का मंत्र:- माता पिता की सेवा से जीवन धन्य होता है चाणक्य नीति का कहना  है कि माता पिता से बढ़कर कोई नहीं है. हर संतान का माता पिता की सेवा करना प्रथम फर्ज है. जो मनुष्य अपने माता पिता का आदर और सम्मान करते हैं, उनकी सभी जरूरतों का ध्यान रखते हैं.वो सभी के प्रिय होते हैं और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.   गीता में भगवान श्रीकृष्ण सेवा के महत्व के बारे में जानकारी देते हुए कहते हैं सेवा का भाव मनुष्य को श्रेष्ठ बनाता है, जो दिल से सेवा का भाव रखता है और उसके मन में सेवा करने की ललक है, उसे सुख, शांति और वैभव प्राप्त होता है. विद्वान भी कहते हैं सेवा का भाव मनुष्य के उत्तम गुणों में से एक है. सेवा का भाव सभी के प्रति रखना चाहिए चाहे वो मनुष्य  हो या फिर जानवर.  सब्सी बड़ी सेवा माता पिता की सेवा मानी गयी है.  माता पिता की सेवा से पुण्य प्राप्त होता है. शास्त्रों में माता पिता की सेवा को विशेष दर्ज़ा दिया गया है. माता पिता की सेवा करने से ही भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता का दर्जा प्राप्त है.  आइए जानते हैं क्या है इसकी कथा-   भगवान गणेश जी को बुद्धि का दाता माना गया है. उनका एक नाम लंबोदर भी है. गणेश जी की चार भुजाएं हैं. गणेश जी के कान बड़े हैं. जो उन्हें सर्तक रहने और ग्रहण शक्ति तीक्ष्ण होने का संकेत देते हैं. उनके छोटे नेत्र तीक्ष्ण दृष्टि के सूचक हैं. हाथी के समान उनकी नाक महाबुद्धित्व का प्रतीक मानी जाती है.   पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं में होड़ लगी की सबसे पहले किसकी पूजा की जाएगी? इस बात का उत्तर निकलने के लिए  भगवान शिव ने कहा जो सबसे पहले संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा लगा लेगा, वही इस सम्मान का उत्तराधिकारी होगा. भगवान शिव ने देवताओं को आदेश दिया. आदेश मिलते ही सभी देवता अपने अपने वाहनों पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े. लेकिन जब बात गणेश जी की आई तो अन्य सभी देवताओं के मन में शंका उत्पन्न हुई कि गणेश जी कैसे परिक्रमा करेंगे. वे तो स्थूल शरीर के हैं और उनका वाहन भी मूषक है. लेकिन गणेश जी ने अपनी बुद्धि से अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती की तीन परिक्रमा पूरी की और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गणेश जी से कहा कि तुमसे बड़ा बुद्धिमान इस संसार में और कोई नहीं है. गणेश जी ने माता और पिता की तीन परिक्रमा की, जिसे तीनों लोकों की परिक्रमा के बराबर माना गया.