मंहगाई (इंफ्लेशन)क्या है ? मंहगाई कितने तरह की होती है ?


स्टोरी हाइलाइट्स

जब किसी देश में वस्तुओं या सेवाओं की कीमतें सामान्य से अधिक हो जाती हैं तो इस स्थिति को मंहगाई (इंफ्लेशन) कहते हैं।

मंहगाई (इंफ्लेशन)क्या है ? मंहगाई कितने तरह की होती है ? जब किसी देश में वस्तुओं या सेवाओं की कीमतें सामान्य से अधिक हो जाती हैं तो इस स्थिति को मंहगाई (इंफ्लेशन) कहते हैं। कीमतें बढ़ जाने की वजह से पर्चेजिंग पावर प्रति यूनिट कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि महंगाई बाजार में मुद्रा की उपलब्धता और वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी को मापने की एक तरकीब है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि वक्त के साथ पैसे की कीमत घटती जाती है क्योंकि महंगाई दर बढ़ने से मुद्रा की क्रय शक्ति घटने लगती है। अगर आपका निवेश महंगाई दर से कम रिटर्न देता है, तो सौदा घाटे का है। अगर आपका बैंक आपके पैसे पर 4 फीसदी का रिटर्न दे रहा है और महंगाई दर 8 फीसदी है तो आपको बैठे बिठाए 4 फीसदी का नुकसान हो रहा है।   आइए जानते हैं कितने तरह की होती है मंहगाई- 1. थोक महंगाई दर  भारत में नीतियों के निर्माण में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर का इस्तेमाल किया जाता रहा है। थोक बाजार में वस्तुओँ के समूह की कीमतों में सालाना तौर पर कितनी बढ़ोत्तरी हुई है इसका आकलन महंगाई के थोक मूल्य सूचकांक के जरिए किया जाता है।  भारत में इसकी (WPI) गणना तीन तरह की महंगाई दर, प्राथमिक वस्तुओं, ईंधन और विनिर्मित वस्तुओँ की महंगाई में बढ़त के आधार पर की जाती है। महत्त्व:- अभी तक भारत में वित्तीय और मौद्रिक नीतियों के कई फैसले थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर के हिसाब से ही की जाती रही है। रीटेल महंगाई दर रीटेल महंगाई दर (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स) वह महंगाई दर है जो जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है और खुदरा कीमतों के आधार पर तय की जाती है। भारत में रीटेल महंगाई दर खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 45 फीसदी के करीब है। दुनिया भर में ज्यादातर देशों में रीटेल महंगाई के आधार पर ही मौद्रिक नीतिय़ों का निर्माण होता है। भारत में भी अब आरबीआई ने स्पष्ट कहा है कि ब्याज दरें तय किए जाने से पहले रीटेल महंगाई दर पर नजर रखी जाएगी। - हाल ही में सरकार ने महंगाई से बचने के लिए निवेशकों के लिए रीटेल महंगाई से जुड़े बांड जारी किए हैं।   कोर इन्फ्लेशन खाद्य पदार्थों की कीमतों और ईंधन की कीमतों को हटा कर जो रीटेल महंगाई दर बचती है उसे कोर इन्फ्लेशन कहा जाता है। इसे नॉन फूड मैन्युफैक्चरिंग इन्फ्लेशन भी कहा जाता है। इस आंकड़े के पीछे का तर्क ये है कि खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतों में अचानक उतार-चढाव देखा जाता है और इसलिए उनके अस्थायी और अप्रत्याशित असर को बाहर कर कोर इन्फ्लेशन मापा जाता है। खाद्य पदार्थों और ईंधन को छोड़कर अन्य पदार्थों की महंगाई दर की दिशा को मापने का यह एक असरदार जरिया है। कोर इन्फ्लेशन का अधिक होना किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती है। हाइपर इन्फ्लेशन हाइपर इन्फ्लेशन एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें महंगाई की दर काफी ऊंचे स्तर पर चली जाती है। सामान्य स्थितियों में, किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और मुद्रा की कीमत मोटे तौर पर स्टेबल रहती है, लेकिन हाइपर इन्फ्लेशन की स्थिति में किसी अर्थव्यवस्था में चीजों की कीमतें घरेलू स्तर पर बड़ी तेजी से बढ़ती हैं। इसका मतलब यह है कि उस देश की मुद्रा की कीमत में उथल-पुथल होती है, जबकि विदेशी करेंसी में कोई ज्यादा बदलाव नहीं होता है। इसका परिणाम यह होता है कि उस देश की घरेलू मुद्रा अपनी वास्तविक कीमत बड़ी तेजी से खोने लगती है। दुनिया भर में हाइपर इन्फ्लेशन के कई उदाहरण हैं। हाइपर इन्फ्लेशन का सबसे बड़ा मामला 1945-46 के दौरान हंगरी में दर्ज किया गया था, जब चीजों की कीमतें औसतन हर 15 घंटे में दोगुनी हो जाती थीं।