अनी के कर्तव्य : अखाड़ों की शासन व्यवस्था : अखाड़े के साधुओं की श्रेणियाँ


स्टोरी हाइलाइट्स

अखाड़ों की शासन व्यवस्था : अखाड़े के साधुओं की श्रेणियाँ

अनी के कर्तव्य - कुम्भ के अवसर पर अनी के महंत खालसाओं के महन्तों से उनकी सामर्थ्य के अनुसार रकम लेकर उन्हें एवं उनकी मूर्तियों (अनुयायियों) को बैंड-बाजे, अखाड़ों सहित नहलाने के लिए ले जाते हैं एवं साथ ही साधु-समाज के विवाद की चतुः सम्प्रदाय के साथ मिलकर निर्णय लेते हैं। वास्तव में साधु-समाज पर इन अनियों का प्रभुत्व है, इस कारण श्री लक्ष्मणदास जी का कहना है कि अनी के लोग महाराजा हैं। वैष्णव वैराग्य की तीन अनी हैं -

1.निर्मोही

2. दिगम्बर और

3. निर्वाणी।




अखाड़ों की शासन व्यवस्था - अखाड़ों का रजिस्टर्ड विधान है। निर्मोही अखाड़ा-रामघाट अयोध्या के महंत श्री रघुनाथदास जी ने 'श्री पंच रामानन्दीय निर्मोही अखाड़ा श्री अयोध्याजी का रजिस्टर्ड विधान ' प्रकाशित किया है। उनके अनुसार निम्नलिखित सूचना शासन व्यवस्था के बारे में मिलती है -

महन्त - महन्त का चुनाव प्रत्येक अखाड़े के सदस्य नागा अतीत करते हैं। इनके द्वारा चुने महंत को चुनाव के समय उपस्थित रहना पड़ता है। अखाड़ों की व्यवस्था पंच तथा सरपंच आदि की एक कार्यकारिणी समिति द्वारा की जाती है। महन्त को इस समिति की आज्ञा मानना पड़ती है अन्यथा उसे सामान्य सभा पदच्युत कर देती है। महंत, सरपंच या पंच आदि त्यागपत्र न दे तो उसे आजीवन अपने पद पर बने रह सकने का अधिकार है। इनमें से यदि किसी की मृत्यु हो जाए या कोई त्यागपत्र दे दे तो रिक्त स्थान की पूर्ति अखाड़े के नागा अतीतों की एक विशेष आयोजित सभा द्वारा की जाती है।

अखाड़े की सम्पत्ति की देखभाल व्यवस्थापिका समिति के कुछ पंचों द्वारा होती है। वर्ष में कार्यकारिणी की बैठक एक बार अवश्य होती है। उसमें प्रत्येक साधु व महंतादि के कर्तव्य पर विचार किया जाता है।

महंत अखाड़े की सम्पत्ति का स्वामी होता है। उसे मन्दिर आदि की पूजा व्यवस्था करनी पड़ती है। परम्परा की रक्षा करना भी उसी का काम है। साम्प्रदायिक वेशभूषा, आचार-व्यवहार का उसे पूरा पालन करना पड़ता है। न तो उसे उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार होता है और न परम्परा के विरुद्ध आचरण करने का। साधुओं को नागा बनाने का कार्य महंत ही करता है। उसे ही शिष्य बनाने का भी अधिकार होता है। महंत आय-व्यय का पूरा लेखा-जोखा पंचों को देता रहता है और महन्ती से हट जाने पर सामान्य सदस्य मात्र रह जाता है।

अखाड़े के साधुओं की श्रेणियाँ - अपने गुरु के स्थान को छोड़कर चतुः सम्प्रदाय की सेवा करने की भावना वाला साधु इन अखाड़ों में सम्मिलित होता है और 'अखाड़ा मल्ल' नाम से पुकारा जाता है। तब वह निम्नलिखित श्रेणियों को पार कर 'नागा' श्रेणी तक पहुँचता है। जिस नागा की सेवा में वह रखा जाता है, उसका वह 'सादिक' कहलाता है। अखाड़ों में साधुओं की श्रेणियाँ इस प्रकार हैं

1.यात्री - नागा अतीत के लिए दातुन आदि का प्रबन्ध करते है तथा इधर-उधर भ्रमण किया करते हैं।

2. छोरा - ये नागा अतीतों को स्नानादि कराते तथा उनके पीने का पानी लाते हैं। साथ ही इनका कार्य पत्ता-दोना लगाना, झाडू लगाना है। इसका व्यावहारिक नाम 'रकमी भी होता है।

3.बंदगीदार - इसका कार्य चौका, झाड़ू, भोजन तैयार करना तथा शास्त्र व शस्त्र की शिक्षा प्राप्त करना है। साथ ही यह कोठार की वस्तुओं को संभालता, हनुमानजी का पट लेकर चलता है और छड़ी उठाता है।

4. हुरदंगा अथवा हुड़दंगा - इसका कार्य भगवत सेवा, पूजा, आरती करना, भोग लगाना, पतंग कराना, निशान उठाना, पंच की गोलक सँभालना है तथा शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुणता प्राप्त करना है।

5.मुरीठिया अथवा मुदाठिया - भगवान की पूजा करना, हिसाब सँभालना एवं शास्त्र व शस्त्र में पूर्णतया निपुण हो जाना है।

6.नागा- सेवकों को चेतावनी देना, भगवत-भागवतों की पूजा का प्रबन्ध करना, सम्प्रदाय के मठ, मन्दिरों एवं अनुयायियों की रक्षा करना, नृसिंहा बाजा बजाना, जमात बनाकर देश में भ्रमण करना और प्रचार करना इनके कर्तव्य हैं। यह नागा चार शैली के होते हैं - बसंतिया , हरद्वारी, सागरिया और उज्जैनी।

7.अतीत - यह सिद्ध नागा की स्थिति है। इनका प्रमुख कार्य सम्प्रदाय की प्रमुख समस्याओं पर विचार करना है। सिद्ध नागाओं को ही नागा अतीत के नाम से अभिहित किया जाता है।

इसके अतिरिक्त इनकी दो श्रेणियाँ और मानी जाती हैं 1.

1.सदर नागा- पंच मिलकर सदर नागा का चुनाव होता है। तत्पश्चात् वह जमात बाँधकर देश में बारह वर्ष तक भ्रमण करता है।

2. महा अतीत - इसका मुख्य कार्य भगवत् भजन करना है।

अखाड़ों की उपरोक्त श्रेणियों की अवधि तीन-तीन वर्ष की होती है जिसमें सदर नागा की अवधि 12 वर्ष की होती है। 52 महतों के ऊपर एक सदर नागा का अधिकार होता है और 52 नागाओं के ऊपर एक अतीत का अधिकार होता है।

इन श्रेणियों के अतिरिक्त एक विशेष 'स्थिति अखाड़ामल्लों' की भी होती है, जिसमें साधक गुरू की अनुमति प्राप्त कर अधिकांश समय शारीरिक विकास में व्यतीत करता है। यह व्यवस्था केवल विशेष रूप से उन्नतिशील साधकों के लिए स्वीकृत की जाती है।

चेला बनाने की अवस्था - चेलों को पहले बड़ी सेवा और तपस्या करनी पड़ती है। उनका प्रवेश 16 वर्ष की अवस्था में होता है। यद्यपि ब्राह्मणों और राजपूतों के लिए यह बंधन नहीं रहता। किन्तु सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि बहुत से साधु वाल्यकाल से ही इसमें प्रवेश कर चुके हैं।

अनियों के ध्वज और चिन्ह - अखाड़े के ध्वज 1312 फीट चौड़े और 6 फीट ऊँचे होते हैं। दिगम्बर अनी अखाड़े का ध्वज पाँच रंगों का होता है- गहरा नीला, लाल, पीला, हरा और सफेद। ध्वज के एक तरफ हनुमानजी का और दूसरी और सूर्य बना हुआ होता है। इस ध्वज के ऊपरी भाग पर कलश भी होता है। ध्वज की यह बनावट रामानन्द सम्प्रदाय को दर्शाती है।

निर्मोही और निर्वाणी अखाड़ों के ध्वज का रंग सफेद होता है। ध्वजों पर बाहर की ओर हनुमानजी और भीतर की ओर सूर्य देवता के स्थान पर गरूड़ की आकृति होती है। कुम्भ के अवसर पर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में प्रति बारह वर्ष के उपरान्त तीनों अनी अखाड़े जुटते हैं और इनका महत्व और सम्मान होता है।
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