योग के रहस्य: सिर्फ आसन ही नहीं है योग? योगावस्था क्या है? What is Yoga and what is the real meaning of Yoga?


स्टोरी हाइलाइट्स

योग के रहस्य : पतंजलि के अनुसार योग मन पर विजय प्राप्त करने की एक चैतन्य प्रक्रिया है।भगवद्गीता और उपनिषदों में वर्णित योग का क्षेत्र काफी व्यापक है।

योग के रहस्य: सिर्फ आसन ही नहीं है योग? योगावस्था क्या है? 

पतंजलि के अनुसार योग मन पर विजय प्राप्त करने की एक चैतन्य प्रक्रिया है।

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भगवद्गीता और उपनिषदों में वर्णित योग का क्षेत्र काफी व्यापक है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है 'यह (योग) किसी के कायिक अस्तित्व के विकास को किसी एकल जीवन अथवा कुछ महीनों या थोड़े से घंटों में संपीडित करने का एक साधन है।'

योग के रहस्य
साधारणतया समस्त सृजन में प्रकृति से अन्योन्य क्रियाओं के कारण विकास की प्रक्रिया चलती है। किन्तु इस प्राकृतिक विकास में हजारों और लाखों वर्ष लग सकते हैं, पशुओं में यह लम्बी और जटिल प्रक्रिया होती है। 

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मनुष्य को विवेक शक्ति, चैतन्य, सोचने-विचारने का संकाय, मन (बुद्धि) और समुचित रूप से विकसित स्वैच्छिक नियंत्रण प्रणालियां उपलब्ध हैं, जो इस विकास (वृद्धि) में तीव्रता ला सकती हैं। योग वह व्यवस्थित चैतन्य प्रक्रिया है, जिससे मनुष्य के विकास की प्रक्रिया बहुत कम समय में पूरी की जा सकती है।

श्री अरविन्दो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तरों पर चहुँमुखी व्यक्तित्व के विकास पर जोर देते हैं। योग से उनका तात्पर्य है: व्यक्ति में अव्यक्त क्षमताओं के विकास द्वारा आत्म-पूर्णता की ओर एक व्यवस्थित प्रयास। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे कमियां और अपूर्णताए दूर हो जाती हैं और व्यक्ति एक महामानव के रूप में रूपांतरित हो जाता है। इस प्रकार योग किसी व्यक्ति की उसके विकास को पूर्णता तक पहुंचाने की एक क्रमबद्ध प्रक्रिया है। इस विकास से व्यक्ति चेतना के उच्च स्तर पर जीना सीख जाता है। इस प्रकार योग व्यक्तित्व के चहुँमुखी विकास और वृद्धि तथा मानसिक संवर्धन की कुंजी है।

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योग के रहस्य
योग के द्वारा व्यक्ति चेतना के उच्च स्तरों में कूद जाता है।

जैसा कि पहले बताया गया है कि पतंजलि ने अपने द्वितीय सूत्र में योग को योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः (योग सूत्र: 1.2) के रूप में पारिभाषित किया है। योग मन को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है। नियंत्रण में दो पहलू होते हैं- किसी वांछित विषय अथवा वस्तु पर ध्यान को एकाग्र करने की शक्ति और लम्बे समय तक शांत रहने की क्षमता।

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पहले पहलू, यानी एकाग्रता को हम विकसित कर रहेे हैं किन्तु मनुष्य की दूसरी क्षमता मौन और शांत रहने का कार्य कभी-कभी ही हो पाता है। इसलिए योग में इस दूसरे पहलू पर मुख्य रूप से जोर दिया गया है। 'योग वासिष्ठ', जो योग पर सर्वोत्तम ग्रन्थ हैः "मनः प्रशमनोपायः योगः इत्यभिधीयते"- योग मन को शान्त करने का एक कुशल उपाय है। यह मन में उठने वाले विचारों/भावनाओं को रोकने की एक कठोर, यांत्रिक या स्थूल प्रक्रिया नहीं, बल्कि कुशल व सूक्ष्म प्रक्रिया है। योग मन पर नियंत्रण स्थापित करने का एक कौशलपूर्ण विज्ञान है।

योग के रहस्य: 
यह पूर्णता की अंतिम स्थिति तक पहुंचने की एक प्रक्रिया अथवा एक तकनीक के रूप में विख्यात है। किन्तु योग को उच्च शक्ति और क्षमताओं की स्थितियों के रूप में भी पारिभाषित किया गया है और इसे मौन की अंतिम स्थिति के रूप में भी कहा गया है। इसके अतिरिक्त योग को समस्त रचनात्मक कार्यों की शक्ति के रूप में भी वर्णित किया गया है और स्वयं में यह एक सृजन भी है। 

अब हम देखेंगे कि इसे विभिन्न योग व उपनिषदीय ग्रंथों में एक स्थिति और शक्ति के रूप में भी निरूपित किया गया। एक अकुशल व्यक्ति यदि दूरदर्शन सेट की मरम्मत करने का प्रयत्न करता है तो लगभग यह माना जाएगा कि वह इसे बरबाद कर देगा, जबकि एक अनुभवी और कार्यकुशल व्यक्ति पूर्ण रूप से जानता है कि इसमें क्या खराबी है और इसकी मरम्मत किस प्रकार करनी है। वह इसकी उचित रूप से मरम्मत करता है। इसीलिए जानकारी का होना अनिवार्य है।

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कार्य रूप में परिणत करने में योग एक विशेष कौशल है, जिससे मन एक स्थिर अवस्था में पहुंच जाता हैः 

"योगः कर्मसु कौशलम्"योग कर्म में दक्षता है। दक्षता विश्राम और सजगता को कर्म में कायम रखने की होती है। इस प्रकार योग मन पर नियंत्रण स्थापित करने का एक कौशलपूर्ण विज्ञान है। 

योग लोकप्रिय रूप से पूर्णता की अंतिम स्थिति तक पहुंचने की एक प्रक्रिया अथवा एक तकनीक के रूप में विख्यात है किन्तु योग को उच्च शक्तियों और क्षमताओं की अवस्थाओं के रूप में भी पारिभाषित किया गया है और इसे मौन की अंतिम स्थिति के रूप में भी कहा गया है। इसके अतिरिक्त योग को समस्त रचनात्मक कार्यों की शक्ति के रूप में भी वर्णित किया गया है और स्वयं में यह एक सृजन भी है। 

अब हम देखेंगे कि इसे विभिन्न योग व उपनिषदीय ग्रंथों में एक स्थिति और शक्ति के रूप में भी निरूपित किया गया।

 योग प्रायः हमारे मन की सूक्ष्म कारणात्मक पर्तों से संबन्ध स्थापित करता है।

योग के रहस्य
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।

सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।   

हे! धनंजय सफलता या असफलता में समान भाव रखते हुए आसक्ति को त्याग कर योग में स्थिर होकर कर्म करते रहो। समान भाव रखना ही योग है। इस प्रकार, मन की वह सूक्ष्म अवस्था जो स्थिरता द्वारा परिलक्षित होती है, योगावस्था कहलाती है। भावना के स्तर पर योग व्यापक रूप से स्थिरता की एक स्थिति होती है, जिसमें मानसिक स्तर पर ध्यान की एकाग्रता और अनासक्ति उत्पन्न होती है तथा शारीरिक स्तर पर स्थिरता प्राप्त होती है। इसमें शरीर और मन का समन्वय स्थापित होने के कारण व्यक्ति में पूर्णता आ जाती है।

इस प्रकार योग हैः  

मन को शांत रखकर स्वयं को एकाग्र करने की प्रक्रिया, मन की उच्च, सूक्ष्म पर्तों की स्थितियां, और मनुष्य और प्रकृति की रचनात्मक शक्ति को भी योग कहा गया है।

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योग के रहस्य