बंगाल की राजनीति में सीधी भागीदारी से होगा, किसान आंदोलन को नुकसान - सरयूसुत मिश्रा 


स्टोरी हाइलाइट्स

The movement going on in the name of farmers is now reaching its real goal. The leaders who agitated in the name of farmers....

बंगाल की राजनीति में सीधी भागीदारी से होगा, किसान आंदोलन को नुकसान - सरयूसुत मिश्रा किसानों के नाम पर चल रहा आंदोलन अब शायद अपने वास्तविक लक्ष्य की ओर पहुंच रहा है. किसानों के नाम पर आंदोलन करने वाले नेता आज बंगाल की चुनावी राजनीति में खुलेआम उतर गए हैं. किसान नेताओं ने आज कोलकाता में बंगाल के मतदाताओं से भाजपा को मत नहीं देने का अनुरोध किया है. बंगाल के जागरूक मतदाता किसानों के नाम पर राजनीतिक खेल खेलने वालों की बातों पर कितना भरोसा करेंगे, यह तो चुनाव परिणाम बताएंगे. लेकिन किसान आंदोलन का असली मकसद तो सामने आ ही गया है. यह बात तो पहले से ही महसूस की जा रही थी कि आंदोलनकारी कृषि कानूनों की कमियों के बारे में बिंदुवार बातचीत न करके केवल इसीबात  पर अड़े रहे कि इन कानूनों को वापस लियाए जाए. सरकार तो किसान नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत कर चुकी. कृषि कानूनों से किसानों को होने वाले फायदों के बारे में आंदोलनकारियों को बताया जा चुका है. लेकिन आंदोलनकारियों को शायद बात समझ नहीं आयी. दरअसल उनका उद्देश्य किसान हित से ज्यादा अपने राजनीतिक सहयोगियों को लाभ पहुंचाने के लिए भाजपा को हारने की अपील की है. लगभग सवा तीन महीनों से चल रहे आंदोलन का मकसद यही था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराया जाए. किसान आंदोलनकारियों ने अपने राजनीतिक समर्थकों को खुले रूप से लाभ पहुंचाया. अब यह किसान नेता यह कैसे कहेंगे कि हमारा राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. हम तो किसानों की के हित में लड़ रहे हैं. किसान आंदोलनकारी नेताओं ने बहुत बड़ा जोखिम उठाया है. जिस ढंग की रणनीति पर वह आगे बढ़ रहे हैं, उससे राजनीतिक लाभ या नुकसान किसी भी दल को हो, लेकिन किसान आंदोलन को नुकसान होना निश्चित है. आम किसानों को भी यह महसूस हो रहा है कि उनके कथित नेता किसानों के हित से ज्यादा अपने राजनीतिक सहयोगियों के लिए काम कर रहे हैं. भविष्य में इस आंदोलन से जुड़े किसान भी इससे अलग हो सकते हैं. जिन किसानों का उद्देश्य राजनीतिक नहीं है, जो केवल किसी कानून के नाम पर आंदोलन से जुड़े हैं निश्चित ही इस आंदोलन से दूर होंगे. किसान और किसान नेताओं के आह्वान के बाद भी अगर बंगाल के जागरूक मतदाताओं ने उनकी अपील को दरकिनार करते हुए भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया तो ऐसी स्थिति में किसान नेता कहाँ मुंह दिखाएंगे. क्या चुनाव परिणामों के साथ ही यह सारे नेता आंदोलन स्थल को खाली कर अपने- अपने घरों को चले जाएंगे. ऐसा पहली पहले भी कई बार देखने में आया है कि किसी व्यक्ति, संस्था या व्यवस्था का अतार्किक ढंग से विरोध उसी व्यक्ति, संस्था या व्यवस्था को लाभ पहुंचाता है. एक प्रकार से यह विरोध उस संस्था, व्यक्ति या व्यवस्था के बारे में आम लोगों को सोचने के लिए प्रेरित करता है. जब वह सोचता है उसे लगता है कि विरोध में जो कुछ भी कहा जा रहा है सच से काफी दूर है, तो फिर वह अपने अनुसार निर्णय लेता है. यह विरोधी एक तरीके से उसका विरोध के नाम पर प्रचार ही करते हैं. चुनाव में आंदोलन झोंकना किसान नेताओं की बड़ी भूल है. दिल्ली घेरने के नाम पर किसान नेताओं ने जो आह्वान किया और उसके बाद दिल्ली में 26 जनवरी को जो घटना हुई है, उसको पूरे देश ने देखा है. इस घटना के बाद नेताओं में आंसू बहाते हुए देश से माफी मांगी और कहा कि जो कुछ भी हुआ है उसमें शरारती तत्व शामिल हैं. इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है. जब आप किसी बात का आह्वान करते हैं और उस आंदोलन मैं होने वाली सारी घटनाक्रमों को सहेजे रखने की आपमें क्षमता नहीं है, तो फिर ऐसा आवाहन करना ही नहीं चाहिए. दिल्ली जैसे घटनाक्रम को बंगाल में करने  के लिए पहुंचे हैं. किसानों की फसल पक रही है. फसल की कटाई बेचने की तैयारी में किसान लगा हुआ है. यह कौन किसान नेता हैं, जिन्हें अपने किसानों की फसल कटाई और बेचने की चिंता नहीं है. आंदोलन की रट लगाए हुए हैं. किसानों की एक मांग भी है कि एमएसपी पर उपज की खरीदी के लिए सरकार कानून बनाए. किसानों की यह मांग कितनी अजीब है. एक तरफ किसान अपना गेहूं बेचने के लिए  अपना गेहूं एमएसपी पर बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं और पंजाब-हरियाणा, जहां के किसान बड़ी संख्या में आंदोलन से जुड़े हुए हैं,वहाँ भी एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं. मध्यप्रदेश में तो जितने किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, उसने पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. पिछले साल से अधिक संख्या में किसानों ने एमएसपी पर गेहूं खरीदी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. जब किसानों को एमएसपी पर गेहूं बेचने की व्यवस्था लागू है तो फिर इसे कानून की शक्ल देने की मांग करने का क्या औचित्य है? किसानों के सामने अपनी फसल एमएसपी या बाजार में उससे अधिक कीमत पर बेचने का अधिकार हो, इससे किसका हित प्रभावित हो रहा है? पंजाब में एमएसपी पर गेहूं खरीदी की व्यवस्था में आढ़तियों की भूमिका होती है. पंजाब में संभवत: ऐसा होता है कि किसानों को एमएसपी पर गेहूं खरीदी का भुगतान आढ़तियों के माध्यम से होता है. गेहूं का मूल्य सीधा किसानों के खाते में नहीं जाता. सरकार की ओर से पैसा आता है और उसके बाद आढ़तिये पहले किसानों को किये गये भुगतान की राशि काटकर किसानों को भुगतान करते हैं. इस बार भारत सरकार ने ऐसी व्यवस्था करने की पहल की है कि एमएसपी की राशि किसानों के खाते में जाएगी. ऐसी पहल की बात सामने आने के बाद आढ़तियों ने आंदोलन की बात की.  इससे भी यही बात सामने आ रही है कि आंदोलन किसानों से ज्यादा किसी अन्य तत्वों से जुड़ा हुआ है. किसान आंदोलनकारियों द्वारा राजनीति में सीधी भागीदारी जनहित के मुद्दों पर आंदोलन की पवित्रता को भी प्रभावित करेगी. आंदोलन लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण अस्त्र है, लेकिन यह आंदोलन के लिए बहुत खतरनाक है. यदि विषय जनहित का बताया गया हो और निहित लक्ष्य और उद्देश्य कुछ और हो ऐसा ही किसान आंदोलन में हो रहा है